ग़ज़ल -- दुनिया तो सजाओ यारो
ऊपर वाले की दुनिया को यूं न मिटाओ यारो। रिश्ता इससे है कुछ तुम्हारा भी वो निभाओ यारो।। हम न होंगे कल को मगर ये दुनिया तो होगी। आने वालों के लिए ही ये दुनिया तो सजाओ यारो।। कोई मन्दिर है बनाता, मस्जिद बना रहा है कोई। पर दिलों के बीच तुम दीवार तो न बनाओ यारो।। नफरत बढ़ा रहे हैं सभी स्वार्थ में अंधे होकर। तुम तो इस धरती से मुहब्बत न मिटाओ यारो।। अपने लिए तो इस जहां में सभी जी लेते हैं। कभी औरों के लिए भी मर के दिखाओ यारो।। दोस्ती करना आसान है पर है निभाना मुश्किल। छोड़ कर यार को मझधार में तो न जाओ यारो।। जिन्दगी का साथ सदा के लिए मुमकिन ही नहीं। काम कुछ ऐसे करो कि कल को याद तो आओ यारो।। क्या पता एक तुम ही जमाने को बदल डालो। अपने को भलाई की राह में आगे तो लाओ यारो।। करने को रोशन ये जहां एक चिराग ही काफी है। उसी की खातिर तुम तूफान से तो टकराओ यारो।।------------------------------------------------
चित्र गूगल छवियों से साभार