रविवार, 17 जून 2018

वो दर्द सीने में आज भी है जिन्दा


वो दर्द सीने में आज भी है जिन्दा.

हाँ, लड़की हूँ मैं तुम्हें इससे क्या,
हैं मेरे भी कुछ सपने तुम्हें इससे क्या,
तुम्हारे लिए तो महज एक देह थी,
शारीरिक सौन्दर्य की मूर्ति भर थी,
तुम्हारी चाह मैं नहीं मेरा शरीर था,
वो दर्द सीने में आज भी है जिन्दा.

तुम्हारे इजहार पर मेरा इकरार नहीं,
इंकार करना कोई बड़ा अपराध नहीं,
तुम्हारी हाँ से मेरी हाँ मिल न सकी,
मेरी न की तुमने कीमत न समझी,
प्यार नहीं तुम्हारा था एक धोखा,
वो दर्द सीने में आज भी है जिन्दा.

प्यार की आड़ में तेजाब दिया तुमने,
चेहरा बिगाड़ रूप मिटाया तुमने,
खुशियों पर जलता अँधेरा फैला गए,
सपनों को मेरी चीखों में मिटा गए,
हर चीख पर तुमने अट्टहास किया,
वो दर्द सीने में आज भी है जिन्दा.

सुनो गौर से न हूँ कमजोर न लाचार,
थाती मेरा आत्मसम्मान और विश्वास,
सुन्दरता तन की खो गई हो भले,
मन ने फिर सपनों के आकाश बुने,
उस आकाश में अब है उन्मुक्त उड़ना,
वो दर्द सीने में आज भी है जिन्दा.

विराट अभिमानी वजूद को क्या जानोगे,
उसकी विशालता को किसी दिन मानोगे,
अब किसी नकार पर चीख न गूँजेगी,
कोई और बेटी तेजाब में न झुलसेगी,  
दर्द को पीकर दर्द से सीखा है लड़ना,
वो दर्द सीने में आज भी है जिन्दा.


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कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र
17-06-2018