गुरुवार, 31 मार्च 2022

जन्म लेने का नाम ज़िन्दगी नहीं

सिर्फ जन्म लेने का नाम ज़िन्दगी नहीं,

जीवन को पूरा गुजार लेना ज़िन्दगी नहीं,

जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा ज़िन्दगी नहीं.

 

जन्म तो लेते हैं

पशु-पक्षी भी, पेड़-पौधे भी,

जीवन को पूरा बिताते हैं

पशु-पक्षी भी, पेड़-पौधे भी,

जन्म से मृत्यु तक की यात्रा पर जाते हैं

पशु-पक्षी भी, पेड़-पौधे भी.

 

ज़िन्दगी नाम है एक जंग का

खुद से ही लड़ने का,

खुद से जीतने का,

खुद से हारने का.

 

ज़िन्दगी नाम है एक तरंग का

लड़ते हुए हौसला न खोने का,

जीतने पर घमंड न करने का,

हारने पर निराश न होने का.

 

ज़िन्दगी नाम है एक पल का

उस पल में ज़िन्दगी बिता देने का,

उस पल में ज़िन्दगी बना देने का,

उस पल में ज़िन्दगी सिखा देने का.

 

ज़िन्दगी नाम है समय का

उस समय से सीख लेने का,

उस समय में इंसान बनने का,

उस समय में अमरत्व पाने का.

 

ज़िन्दगी नाम है ज़िन्दगी का

ज़िन्दगी को जिंदादिल बनाने का,

ज़िन्दगी में हँसने-मुस्कुराने का,

ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बना देने का.

 

ज़िन्दगी के हर पल में

सीखना होगा हमें खुद ही,

बदलना होगा हमें खुद ही,

समझना होगा हमें खुद ही.

 

ज़िन्दगी है तो एहसास है

कष्टों का, चुभन का,

दुःख का, पीड़ा का,

ग़म का, विषाद का.

 

नहीं ज़िन्दगी तो एहसास नहीं

किसी चुभन का, किसी जलन का,

किसी कष्ट का, किसी पीड़ा का,

किसी आँसू का, किसी करुणा का.

 

काश! सहज होता ज़िन्दगी में

समझना ज़िन्दगी को,

सहेजना ज़िन्दगी को,

सँभालना ज़िन्दगी को.

 

तो हर पल में एक ज़िन्दगी होती.

तो हर ज़िन्दगी में एक ख़ुशी होती.

तो हर ज़िन्दगी एक ज़िन्दगी होती.



शुक्रवार, 18 मार्च 2022

बुलडोजर गाड़ी की बुकिंग

बहुत दिनों से परिवार में मगजमारी चल रही थी नई कार लेने के लिए. पुरानी कार अभी इतनी पुरानी नहीं हुई कि उसे बदला जाए मगर परिजनों द्वारा नई कार लेने के लिए अनावश्यक दबाव की राजनीति की जाने लगी. मध्यमवर्गीय परिवार में नौकरी कितनी भी अच्छी हो, वेतन कितना भी हो मगर वह कम ही रहता है इसी तरह कार चाहे जितनी पुरानी हो गई हो जब तक उसका पंजीकरण एक बार अपना नवीनीकरण ना करवा ले तब तक पुरानी नहीं कहलाती है. पुरानी कार से लगाव तो होता ही है, उससे बड़ी बात रकम का इंतजाम करना होती है. एकबारगी मान लीजिये कि मित्रों की सहायता से, रिश्तेदारों की चक-चक के बीच धन इकट्ठा हो भी जाए तो एक और भय बना रहता है. यह भय पैसे वसूली से ज्यादा, उधार देने वालों की धमकी से ज्यादा आयकर विभाग का होता है. हम जैसे सामान्य नौकरीपेशा वाले व्यक्ति की तनख्वाह कितनी भी हो, नौकरी कितनी भी पुरानी हो यदि उसने नगद रूप में कार या कोई अचल संपत्ति खरीदने का काम किया तो जैसे आयकर विभाग वाले उसे सूँघकर पकड़ लेते हैं. नकद खरीददारी के बाद मकान के आसपास टहलता हर अपरिचित व्यक्ति आयकर विभाग का अधिकारी लगता है और दरवाजे की हर आहट आयकर विभाग का छापा.


वैसे कई बार मन में सवाल उठता है कि दस-पन्द्रह वर्ष की अच्छी नौकरी के बाद भी कुछ लाख का सामान यदि नगद लिया जाए तो आयकर वालों की निगाहें टेढ़ी हो जाती हैं, जबकि हमारे धवल वस्त्रधारी, अतिमासूम जनसेवक चंद महीनों की अपनी गतिविधि के बाद करोड़ों रुपए की संपत्ति खुलेआम लिखित में घोषित करते हैं पर वे आयकर विभाग के राडार पर नहीं आते हैं. ऐसा लगता है जैसे इनकी चल-अचल संपत्ति खुशबूरहित हो, बिना किसी महक की हो, इसी से इनकी संपत्ति आयकर विभाग की सूंघने की क्षमता से बाहर रहती है. बहरहाल आयकर विभाग के चक्कर में हमारी कार की कहानी अधूरी रह जाएगी, चलिए वापस कार पर आते हैं.


अभी मेरी कार को दस साल से कुछ महीना ही ऊपर हुआ है मगर मोहल्ले में, रिश्तेदारों में रोब गाँठने के चक्कर में नई कार लेने का दवाब बनाया जा रहा है. जाहिर सी बात है कि कार नगद तो ली नहीं जाएगी, इसके लिए फाइनेंस करवाने की आवश्यकता पड़ेगी. अब घर वालों को कौन बताए कि जितना डर आयकर विभाग का है, उससे कहीं ज्यादा डर फाइनेंस कंपनियों का है. फाइनेंस कंपनी वालों को आपने गलती से भी एक मिस कॉल कर दी तो यह मानो कि आपके मोबाइल पर क्या दिन क्या रात, क्या सुबह क्या शाम, क्या आराम और क्या काम, हर समय हर जगह बस उन्हीं के फोन आते रहेंगे. ऐसी-ऐसी योजनाएँ आपको बताई जायेंगी जो आपको विश्व की सभी सुख-सुविधाओं से सुसज्जित करने का दम रखती हैं.


खैर, घरवालों के रोज-रोज के शाब्दिक अत्याचारों से तंग आकर एक दिन फाइनेंस कंपनी वालों से तंग होना स्वीकार कर लिया. सब जानते-बूझते इस जाल में फँसने के लिए हमने एक फाइनेंस कंपनी सह कार शोर-रूम को फोन कर दिया. दिल को प्रसन्न करने वाली मधुर सी आवाज को हमने अपनी सारी बातें स्पष्ट कर दीं और कम से कम कीमत में अधिक से अधिक लाभ प्रदान करने का आग्रह कर लिया. परिवार वालों की खुशी देखते ही बनती थी किन्तु हमारी खुशी में जिस तरह से ग्रहण लगा उसे हम ही समझ सकते हैं. रोज नए ऑफर, रोज कम ब्याज पर अधिक से अधिक लोन देने की बात, रोज चार-पाँच कॉल, ऐसा लग रहा था इससे बेहतर आयकर विभाग वालों से ही निपट लिया जाता.


एक दिन कार शो-रूम सह फाइनेंस कंपनी के मैनेजर का फोन आया. अगले ने बताया कि एक बहुत बेहतरीन और नए मॉडल की गाड़ी आ गई है. हमने उसकी विशेषता जाननी चाहिए तो उसने कहा कि आप आ जाइए, गाड़ी शोरूम पर है, उसकी विशेषताएं और कार्यप्रणाली आपको पसंद आएगी. घर वाले भी कुछ सुनने के मूड में नहीं थे. नया मॉडल, नई गाड़ी का नाम सुनते ही उन्होंने हमें ऐसे घेर लिया जैसे सारे विपक्षी दल सरकार को घेर लेते हैं. हम स्पीकर महोदय की तरह बैठ जाइए, बैठ जाइए, चुप रहिए, चुप रहिए ही कहते रहे और परिवार के सारे सदस्य विपक्षी सदस्यों की तरह शोर मचाते रहे. होली का कोई बहाना ना मानकर अंततः हमें जबरिया घसीटते हुए शोरूम पर ले जाया गया.


मैनेजर से मुलाकात की तो उसने नई गाड़ी की बहुत तारीफ की, बोला एकाएक इस गाड़ी की बहुत ज्यादा माँग बढ़ गई है. इसने सुरक्षा की गारंटी ले रखी है, किसी भी तरह के छोटे-बड़े अपराधियों को ख़तम करने की गारंटी भी इस गाड़ी में दी जा रही है. हम आश्चर्य में थे कि आखिर ऐसी कौन सी गाड़ी है जो सामाजिक सुरक्षा, अपराधियों से सुरक्षा करवाती हो. इसकी माँग इतनी बढ़ गई मगर कहीं भी, किसी भी प्रकार के विज्ञापन देखने को नहीं मिले. हम और परिवार के सभी सदस्य उत्सुकता से मैनेजर की बातों को सुनने में लगे थे. गाड़ी दिखाने की बात पर उसने एक फोल्डर निकाल कर हम लोगों के सामने रख दिया. फोल्डर में गाड़ी के बने चित्र को देखकर हम सभी चौंक उठे.


वाकई पिछले कुछ दिनों से यह गाड़ी चर्चा का विषय बनी हुई है, अपराधियों के लिए भय का कारण बनी हुई है. उसे देख पहले तो गुस्सा आया मगर हमने हंसते हुए मैनेजर से कहा इस गाड़ी से घूमने का मजा तो आएगा नहीं. वह हँसते हुए बोला इसके दरवाजे पर खड़े होने भर से आप सब की सुरक्षा बनी रहेगी, अपराधियों से जान-माल सुरक्षित रहेंगे. जब आप और आपका परिवार सुरक्षित रहेगा, संपत्ति सुरक्षित रहेगी तो घूमने-फिरने के लिए एक नई लग्जरी कार के लोन की व्यवस्था हम सस्ते दरों पर करवा देंगे. फिलहाल तो आप अभी इसी बुलडोजर गाड़ी को बुक करवा लीजिए क्योंकि यदि जिंदगी है, अपराधमुक्त समाज है तो आप कहीं भी घूम सकते हैं. ना आपको अपराध का डर होगा, ना अपराधियों का और ना अपनी संपत्ति के लूटने का डर होगा. हम सबको असमंजस में देखकर मैनेजर ठहाका मारकर बोला, बुरा न मानो होली है! आपने जो कार बुक करवाई थी, वही आपको मिलेगी. ये तो बस होली का मजाक था.


हम भी उसके ठहाके में ठहाका मार कर मन ही मन हम सोचने लगे कि अगले की बात तो सही है. बुलडोजर के कारण तमाम सारे अपराधियों की जान सांसत में पड़ी हुई है. आम आदमी सुरक्षित महसूस कर रहा है लेकिन लोन के लिए आने वाली फोन कॉल्स से सुरक्षा देने वाली बुलडोजर कार कब आएगी, अब दिमाग उस तरफ घूमने लगा.




गुरुवार, 3 मार्च 2022

युद्ध के कब्जे में दिल-दिमाग

सुबह-सुबह चाय से पहले समाचार-पत्र की चुस्की लेने के लिए जैसे ही उसे उठाया, प्रथम पृष्ठ की खबर देखकर दिमाग भन्ना गया. जिसकी आशंका भी नहीं थी वो खबर बड़े-बड़े अक्षरों में आँखों के सामने चक्कर काटने लगी. दो देशों की युद्ध वाली स्थिति लम्बी खिंची तो गेंहू का संकट पैदा हो जायेगा, इस खबर ने उतना ज्यादा परेशान न किया जितना इसके नीचे लिखी लाइन ने किया. इसके नीचे ही असल खबर दी गई थी कि ऐसा होने के कारण बीयर के उत्पादन पर असर पड़ेगा. उसके मँहगे होने की सम्भावना है.


ऐसा पढ़ते ही चाय, समाचार-पत्र आदि सब भूल बैठे. एक ही शौक पैदा कर पाए बचपन से अभी तक और बसपन का प्यार दो देशों की मगजमारी में मुश्किल में फँसता दिखाई देने लगा. तुरत-फुरत दिमाग ने आदेश दिया कि दुकानें खुलते ही दस-बारह पेटियाँ लेकर रख लो. बाद की बाद में देखी जाएगी. दिमाग के आदेश पर दिल प्रसन्न होता, उससे पहले ही दिमाग ने डरा दिया. याद आया कि एक दिन बाद मतदान होने के कारण दुकानें तो पिछली शाम से बंद हैं. अब? दिल ने सवाल उछाला तो दिमाग ने उसको सांत्वना दी कि कोई बात नहीं, मोहल्ले में उस बड़े कारोबारी से सम्पर्क कर लो, जो इसी अमृत-रस का व्यापार करता है.




चेहरे पर खुशियों की क्रीम पोत कर बाहर निकल उसकी कोठी के पास तक पहुँचे तो देखा कि उधर धमाचौकड़ी मची हुई थी. समझ नहीं आया कि ये क्या हो रहा है? हमारे सामने वाली लेन में बनी उस शानदार कोठी के सामने कुछ असहज सी हरकतें हो रही थीं. यह शानदार कोठी उसी व्यापारी की है, जिसकी कई दुकानें अमृत-रस का वितरण करती हैं. आँखों को जरा स्टाइल में उस तरफ घुमाकर मौके का मुआयना किया. आपको बताते चलें कि आँखों को स्टाइल में इसलिए घुमाना जरूरी था क्योंकि उस शानदार कोठी का मालिक जबर टाइप का है और यदि उसकी नज़रों को सामने वाले की नज़रों का देखा जाना पसंद न आया तो बस कुत्तों को दौड़ाकर जगह-जगह से कटवा देता है.


स्टाइल में घूमती आँखों ने देखा तो उस कोठी का मालिक या उसका कोई कारिन्दा नजर नहीं आया मगर कुछ बाहरी मानुस जरूर दिखाई दिए. वे सबके सब उस शानदार कोठी से सटे घर के मालिक के साथ खड़े कुछ बतियाने में लगे थे. वैसे वे सब बतिया कम रहे थे, चिल्ला ज्यादा रहे थे. जब लगा कि कुछ विशेष बात नहीं है तो स्टाइल मारती आँखों को वापस सामान्य मुद्रा में लाये और ये सोच कर घर की तरफ वापस लौट आये कि शाम को बात करते हैं उसके किसी व्यक्ति से.  


सोशल मीडिया के अपने बहुत ही जिम्मेवाराना कर्तव्यों का निर्वहन करने के बाद जैसे ही सोने का मूड बनाने की कोशिश की तो मोहल्ले की सडकों पर हंगामा जैसा समझ आने लगा. खिड़की खोलकर देखने की हिम्मत न हुई, लगा कि कहीं किसी खुराफाती चक्कर में कोई बम, गोली खिड़की के रास्ते दिमाग में न घुस जाए. वैसे दिमाग ही सही जगह होता तो आधी रात के बाद तक जागने कि जरूरत ही न होती. बहरहाल, खिड़की तो न खोली, चुपचाप पैरों में बिना चप्पल फँसाये ड्राइंग रूम की तरफ आहिस्ता-आहिस्ता चल दिए. अब आपको ये भी बताना पड़ेगा कि चप्पल क्यों न पहनी, आहिस्ता-आहिस्ता क्यों चले? समझ लो यार, आप भी शादीशुदा होगे, नहीं हो तो समझ जाओगे किसी दिन. हम ये बताने में समय और स्थान बर्बाद न करेंगे.


हाँ तो, हम चले ड्राइंग रूम की तरफ क्योंकि वहीं से सीसी टीवी कैमरे का नियंत्रण रखा जाता था, सो बाहर की सारी उठापटक वहीं स्क्रीन पर दिख जाती. ओ तेरी, ये क्या, सड़क पर उस कोठी वाले के कुत्ते छुट्टा दौड़ने में लगे थे. अभी शाम के समय जो बाहरी तत्त्व उसी कोठी के सामने खड़े दिखे थे, वे इधर-उधर भागने में लगे थे. कोई मकानों की दीवारों पर चढ़ रहा था, कोई बाहर बने लॉन में कूद कर अपनी जान बचा रहा था. कोई दौड़ते-दौड़ते कुत्तों से बचने की कोशिश में लगा था. और यारो क्या गज़ब फुर्ती थी उन कुत्तों में. कभी किसी के ऊपर मिसाइल सा कूद जाते, कभी किसी पर गोला-बारूद सा धमाका कर देते. भागादौड़ी, काटापीटी, खून-खच्चर देखते हुए हमने स्क्रीन ऑफ की और दबे पाँव वापस आकर बिस्तर में घुसे ही थे कि हमारा दरवाज़ा जोर-जोर से पीटे जाने की आवाजें आने लगीं.  


ऐसा लग रहा था जैसे गोलियाँ बरस रही हों, बम चल रहे हों. उनकी आवाज़ से घबरा कर अपने कानों को दोनों हाथों से दबाने की कोशिश की तभी श्रीमती जी की चीखती आवाज़ सुनाई दी, बाहर देखो कोई आया है. एक झटके में आँख खुल गई. आसपास देखा तो सुबह का उजाला फ़ैल रहा था. दरवाजे पर अभी भी कोई अपने होने की सूचना खटखटाते हुए दे रहा था. अनमने भाव से बिस्तर से निकल कर दरवाजे की तरफ बढ़े तो टीवी पर एंकर चिल्ला-चिल्ला कर दो देशों के युद्ध में परमाणु बम के इस्तेमाल की आशंका जता रहे थे. समझ आया कि ये युद्ध दिमाग पर कब्ज़ा कर चुका है. अब सपने में देखी गयी बीयर की कमी से ज्यादा आशंका मानवता की कमी की लगने लगी.

लगातार युद्ध, युद्ध करते रहने, पढ़ते रहने, देखते रहने के कारण वही स्थिति दिमाग पर चढ़ चुकी थी. अब परमाणु हमले की आशंका ने दिल को भी डरा दिया था. एक बार लगा कि काश! नींद में ही बने रहते. कम से कम सपने में बीयर बचाने के लिए ही परेशान हो रहे थे, अब जागने पर मानवता बचाने के लिए भले परेशान हों पर उसे बचा नहीं पायेंगे.

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