बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

हमेशा हैं तुम्हारे साथ

कई बार

कितने असहाय से

होते हैं हम,

हाथ बढ़ा कर

तुम्हारा हाथ

न थाम पाते हैं हम.

 

जानते हुए भी कि

तुमको सहारे की नहीं

एक साथ की जरूरत है

फिर भी

तुम्हारा साथी

न बन पाते हैं हम.

 

तुम्हारी आँखों में

चमकते सितारे

देख-समझ लेते हैं

मगर उनको

अपनी पलकों पर सहेजने को

नजरों से नजरें

न मिला पाते हैं हम.

 

हर बार नहीं होते

कंधे सिर टिका कर

रोने के लिए,

वे देते हैं कई बार

एहसास अपनेपन का,

 

तुमको अपनेपन का

एहसास करवाने को

चाह कर भी

कंधे अपने आगे

न कर पाते हैं हम.

 

किस मजबूरी ने

रोक रखे हाथ

पता नहीं,

क्यों न बन पाये

तुम्हारे साथी

पता नहीं,

नजरों ने

किसलिए मुँह फेरा

पता नहीं,

झुके हुए से

क्यों दिखे कंधे

पता नहीं,

 

बस पता इतना है कि

अधिकारों ने

संकोच के दामन को

रखा है थाम,

साथ देते दिखें न दिखें

हाथ, नजरें, कंधे

मगर सब हमेशा

हैं तुम्हारे साथ.  






कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र