सोमवार, 30 नवंबर 2020

हकीकत है कोई ख्वाब नहीं

साँसें खर्च हो रही हैं

बीती उम्र का हिसाब नहीं,

फिर भी जिए जा रहे हैं तुझे

ऐ ज़िन्दगी तेरा जवाब नहीं.

 

देख तेरी बेरुखी इस कदर 

मन करता है छोड़ने का तुझे,

रोक लेतीं हैं नादानियाँ तेरी  

कि तू इतनी भी खराब नहीं.

 

फूल, कली, सितारे, चंदा

सबमें खोजा तुम सा कोई,

हर शै में मिले हँसीं मगर

किसी में तुझ सा शबाब नहीं.

 

ख्वाब देखा था कभी

तुझे ज़िन्दगी में बसाने का,

ज़िन्दगी बन गए तुम मेरी

ये हकीकत है कोई ख्वाब नहीं.