आज चेहरे खिले हैं विश्वास से,
राम लौटे हैं फिर से
वनवास से.
आया कितना विषम ये
वक़्त था,
दांव पर तो लगा अब
अस्तित्व था.
थे मनुज रूप में अबकी
रावण बहुत,
एक पल को लगा जीत मुश्किल
बहुत.
सारी धरती थी जिसके
अधिकार में,
निष्कासित सा रहा अपने
संसार में.
जिस अयोध्या में जन्मे
थे राम लला,
वहाँ सिर पर एक
तिरपाल था तना.
जन्मभूमि की रक्षा
में एक यज्ञ हुआ,
था प्राण पण की आहुतियों
से सजा.
छँट गया कुहासा है
अब सूर्य खिला,
सूर्यवंश को अपना अस्तित्व
मिला.
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