शनिवार, 25 जुलाई 2015

तेरी चाहत में मेरा हाल कुछ ऐसा हुआ हमदम

गँवारा है न इन आँखों को, तुम्हारा दूर हो जाना,
मचलना धड़कनों का और सांसों का बहक जाना.
तेरी चाहत में मेरा हाल कुछ ऐसा हुआ हमदम,
न देखूं तो परेशानी, मिलो तो आये शरमाना.

तुम आओ आ भी जाओ अब, न मुझको सताओ अब,
भरो बांहों में तुम अपनी, गले अपने लगाओ अब.
तेरी चाहत में मेरा हाल कुछ ऐसा हुआ हमदम,
रहकर तुमसे दूर मुश्किल है इस दिल को समझाना.

घटायें बरसी हैं या फिर मेरे आंसू के धारे हैं,
मेरी हालत पर गुमसुम ये चंदा और सितारे हैं.
तेरी चाहत में मेरा हाल कुछ ऐसा हुआ हमदम,
मुझे रोना ही आया है, जब भी चाहा मुस्काना.

मिले हो आज वर्षों में, सदियों तक संग रहना,
विरहिणी के मरुस्थल में बन सावन बरस जाना.
तेरी चाहत में मेरा हाल कुछ ऐसा हुआ हमदम,
तुम्हीं पर जिंदगी अपनी, तुम्हीं पर मुझे है मिट जाना.

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कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र 
22-07-2015

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

निर्णय - लघुकथा

सड़क पर आते ही उसे लगा कि कुछ लोग उसका पीछा कर रहे हैं. उसने कंधे पर झूलते अपने बैग को संभाला और साथ चल रही बिटिया की कलाई को मजबूती से पकड़ कर क़दमों की रफ़्तार बढ़ा दी. उसने महसूस किया कि पीछा करने वालों ने भी अपनी गति और तेज कर दी. कुछ दूर लगभग दौड़ने की स्थिति में चलने के साथ ही उसने अपनी बेटी को उठाकर गोद में ले लिया. इस क्रम में उसने देखा कि पीछा करने वाले उसके ठीक पीछे आ चुके हैं. इससे पहले कि वो बेटी को संभाल कर पूरी ताकत से भाग पाती पीछा कर रहे लोगों ने उसके हाथ से बच्ची को छीन लिया.

“नहीं मैं अपनी बेटी को नहीं ले जाने दूँगी” वह चीख मारकर चिल्लाई.  

“क्या हुआ? कोई बुरा सपना देखा क्या?” बगल में सोए उसके पति ने उससे झकझोरते हुए पूछा.


वह हाँफती सी पलंग पर बैठ गई. कुछ पल में अपने को संयत कर उसने एक हाथ से पति की हथेली को थामा और दूसरा हाथ अपने पेट पर फेरती हुई बोली, “कुछ भी हो जाये, मैं एबॉर्शन नहीं करवाऊँगी.”