सुबह-सुबह अपने घर की बगिया में हरे-भरे पेड़ के नीचे पड़ी पत्थर की बेंच पर
बैठे चाय की चुस्कियों का स्वाद लिया जा रहा था, उसी समय मोबाइल की घंटी ने ध्यान अपनी तरफ खींचा. कॉल रिसीव
करते ही कॉलोनी के एक परिचित की हास्य भरा स्वर सुनाई दिया, “अरे
भाईसाहब, जल्दी से सोशल मीडिया पर ऑनलाइन आइये. आपके
लालबुझक्कड़ ने लाइव नाटक फैला रखा है.” इससे पहले कि हम कुछ पूछताछ कर पाते, सूचना
देने वाले ने फोन काट दिया. चाय के प्याले में बचे शेष स्वाद को एक घूँट में गटकते
हुए मोबाइल की स्क्रीन पर उँगलियों को दौड़ लगवाई. पता नहीं इस लालबुझक्कड़ ने क्या
गुल खिला दिया? लालबुझक्कड़ और कोई नहीं बल्कि हमारी छोटी सी कॉलोनी के एक सदस्य
हैं. न..न... ये इनका असली नाम नहीं, इनका असली नाम तो है
लालता बाबू कक्कड़. दरअसल ये अपने आपको सर्वज्ञ समझते हैं,
सोचते हैं कि प्रत्येक काम को पूरा करने में इनको महारथ हासिल है. खुद को ज्ञानी
तो इस कदर समझते हैं कि कठिन से कठिन शब्दावली का प्रयोग करते हुए इधर-उधर दौड़ते
रहते हैं. प्रत्येक समस्या का समाधान निकालने की कथित स्व-विशेषज्ञता रखने के कारण
इनकी कार्य-प्रणाली और इनके नाम को लेकर हम कुछ मित्रों ने अपना ही कोड-वर्ड बना
रखा है. ‘वेल ट्राई बट काम न आई’ की कार्य-प्रणाली कोडिंग के
साथ ‘लालता बाबू कक्कड़’ को कर दिया ‘लालबुझक्कड़.’
“यह कतई स्वीकार नहीं है. कार्य-संस्कृति का, कार्यालयीन संस्कृति का तो ध्यान ही नहीं रखा जा रहा है.
समिति अपना काम सही ढंग से नहीं कर रही है. यदि सबकुछ ऐसे ही चरमोत्कर्ष पर चलता
रहा तो उच्चाधिकारियों को शिकायत प्रेषित कर दी जाएगी.” मोबाइल के उठते-गिरते
नेटवर्क के द्वारा जब सोशल मीडिया के यथोचित प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँचे तो देखा कि
हमारे लालबुझक्कड़ इधर-उधर हाथ-पैर फेंकते-फटकारते हुए भाषण वाले अंदाज में बकबकाने
में लगे हुए हैं. कॉलोनी के कई सदस्यों सहित वहाँ के गार्ड द्वारा
हँसते-मुस्कुराते लालबुझक्कड़ की नौटंकी की रिकॉर्डिंग, लाइव
प्रसारण किया जा रहा था. कुछ सदस्य रुक कर नजारा देखने में गए थे तो कुछ
चलते-फिरते अनपेक्षित भाषण का आनंद उठाने में लगे थे. “आखिर जब कॉलोनी के पार्क को
व्यवस्थित करने सम्बन्धी जानकारी दूसरी कॉलोनी के ठेकेदार को, उनकी समिति को क्यों दी गई? इसके लिए हमारी कॉलोनी
की समिति आरोपी है, इसे जासूसी भरा कृत्य कहा जायेगा. यह
अपराध है. इससे होने वाले नुकसान की भरपाई कौन करेगा? कौन बताएगा कि हमारे कितने
पौधे चोरी हो गए? कितने पेड़ गिरा दिए गए?”
लालबुझक्कड़ की स्क्रिप्ट अब पूरी तरह से समझ आ गई. देश की राजनीति में सक्रिय
योगदान करने की लालबुझक्कड़ की आकांक्षा कभी पूरी नहीं हो पाई. बाद में उनके द्वारा
अपनी इस इच्छा को कॉलोनी की राजनीति के द्वारा पूरा किया जाने लगा. समिति के
खासमखास बनकर उनके द्वारा कुछ न कुछ जुगाड़ लगा ली जाती और उनके अपने आर्थिक हित सध
जाते. कभी पार्क के सुन्दरीकरण के नाम पर, कभी घास को व्यवस्थित करने के नाम पर,
कभी कॉलोनी की सुरक्षा के नाम पर सीसी कैमरों को लगवाने के नाम पर, कभी ड्रोन के द्वारा औचक निरीक्षण करवाने के नाम पर लालबुझक्कड़ अपना पेट
भरते रहते. देश की राजनीति की तरह ही कॉलोनी की राजनीति ने करवट बदली और समिति की
सत्ता लालबुझक्कड़ के विरोधी गुट के पास चली गई. इससे हताश-निराश लालबुझक्कड़ किसी न
किसी बहाने समिति को आरोपित करते रहते हैं.
लालबुझक्कड़ की आवाज़ सभी सुरों पर गुजरती-ठहरती बार-बार पानी के घूँट के सहारे
वापस लय पकड़ती. देश की राजनीति में और कॉलोनी की राजनीति में इतना साम्य एकदम से
समझ आ गया. देश में भी आरोप लगाया जा रहा है, हिसाब-किताब माँगा जा रहा है, गिराए गए
विमानों की संख्या पूछी जा रही है. कॉलोनी की राजनीति में भी आरोप लगाया जा रहा है, गिराए गए पेड़ों की संख्या पूछी जा रही है. लालबुझक्कड़ की उसी चिर-परिचित
ऊबन भरी शैली को मोबाइल ऑफ करके अपने से दूर करके एक कप चाय के लिए आवाज़ लगाकर इस
हंगामी लाइव प्रसारण के पीछे की वास्तविक स्थिति का देश की राजनीति से साम्य
बिठाने लगे. लालबुझक्कड़ का असली मुद्दा समिति द्वारा पार्क की व्यवस्था अथवा अन्य
कार्यों का हस्तांतरण किसी और को किया जाना नहीं है. असल मुद्दा तो ये है कि
कॉलोनी के उच्चस्तरीय मामलों के क्रियान्वयन हेतु बने प्रतिनिधिमंडल में
लालबुझक्कड़ द्वारा सुझाये गए लगुआ-भगुआ नहीं लिए गए. इसे लालबुझक्कड़ ने अपनी
प्रतिभा की, अपने ज्ञान की, अपनी
राजनीति की हार समझी. और सच भी है, आखिर ऐसा हो कैसे सकता है? जिस व्यक्ति ने राजनीति करने की आकांक्षा के साथ आँखें खोली हों, राजनीति के तमाम पड़ावों पर अस्वीकार किये जाने के बाद भी खुद को राजनीति
से दूर नहीं रखा वो व्यक्ति एक झटके में कॉलोनी की राजनीति में कैसे हार मान ले?
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