मां परेशान थी क्योंकि उसके सामने अपने बेटे को पालने का संकट था। पति था नहीं, स्वयं अकेली और साथ में नन्हीं सी जान। किसी तरह परेशानियां सहकर, दुःख उठाकर अपने बेटे को पाला-पोसा।
मां अब भी दुःखी थी, परेशान थी क्योंकि अब वो अपने बेटे की पढ़ाई तथा रोजगार को लेकर चिन्तित थी। कहीं कोई सिफारिश नहीं, कहीं कोई पहचान नहीं। किसी तरह रात-दिन एक करके उसने बेटे को पढ़ाया और नौकरी के लायक बनाया।
मां की चिन्ता अभी भी कम नहीं हुई थी अब वो चिन्ता में थी अपने बेटे के विवाह के लिए। वह अभी भी अकेली थी, कोई रिश्तेदार नहीं, कोई संगी-साथी नहीं। किसी तरह से अपने नौकरीशुदा बेटे के लिए सुन्दर, सुघढ़ सी बहू ला पाई।
मां का दुःख अब पहले से अधिक बढ़ गया था। मां अब पहले से अधिक परेशान रहने लगी थी। मां की चिन्ता अब पहले से कहीं अधिक घनी हो गई थी। अब घर में बहू थी पर उसका बेटा अब उसका नहीं था।
मां का दुःख अभी भी उसका स्वयं का था। मां की परेशानी अभी भी उसकी स्वयं की थी। मां की चिन्ता अभी भी उसकी स्वयं की थी। नहीं था तो उसका बेटा ही अपना नहीं था।
चित्र गूगल छवियों से साभार
1 टिप्पणी:
दुःख है कि माँ का दुःख, चिंता कभी कम नहीं होती !
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