सुबह-सुबह आँख खुली तो कमरे का नजारा बदला हुआ लगा। जहाँ सोया था जगह वो नहीं लगी, पलंग भी वो नहीं था, आसपास का वातावरण भी वो नहीं था। चौंक कर एकदम उठे और जोर की आवाज लगाई। एक हसीन सी कन्या ने प्रवेश किया, समझ नहीं आया कि घर में इतनी सुन्दर कन्या कहाँ से आ गई। उसके हाथ में कुछ पेय पदार्थ सा था जो उसने मुझे थमा दिया। बिना कुछ पूछे, बिना कुछ जाने सम्मोहित सा उसे पीने लगे। मन की, तन की खुमारी एकदम से मिट गई।
अब थोड़ा सा खुद को सँभालकर उससे सवाल किया कि ये मैं कहाँ हूँ? उसने बताया कि ये मृत्युलोक नहीं है, ये तो पारलौकिक जगत है, जिसे कुछ लोग स्वर्ग और नरक के नाम से जानते हैं। हमारे एक और सवाल पर जवाब आया कि समूचे जगत में समानता-बंधुत्व-भाईचारा को देखते हुए स्वर्ग-नरक का भेद समाप्त कर दिया गया है। अब यहाँ सभी को इसी तरह की व्यवस्था प्रदान की गई है, हाँ उसके कार्यों और यहाँ के चाल-चलन को देखकर उसकी सुविधाओं में कमी-बढ़ोत्तरी होती जाती है।
अब मेरे चौंकने की तीव्रता और बढ़ गई, समझ नहीं आया कि बिना मरे हम यहाँ आ कैसे गये? दिमाग पर थोड़ा सा जोर डाला तो पता चला कि 21 मई की शाम को प्रलय आनी थी पर नहीं आई थी। उसके बाद रात को पूरी प्रसन्नता के साथ पी-खाकर सोये थे, जश्न मनाते हुए....फिर मृत्यु? उसी कन्या ने जैसे दिमाग को पढ़कर समाधान किया-‘‘तुम्हारे देश में प्रलय कुछ घंटों देरी से आई थी। रात को सोने पर तुम हमेशा के लिए सोते रह गये।’’ मेरे पूछने पर कि क्या सब कुछ तबाह हो गया, उसका उत्तर हाँ में आया।
इसके बाद उसने उठने का इशारा किया और कमरे से बाहर निकल गई। मैं भी बिना किसी भय के, बिना किसी मोह के कमरे से बाहर निकल आया। अब मोह किसका, सभी तो यहीं कहीं आसपास ही होंगे। कमरे के बाहर का वातावरण मनोहारी था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी, जैसी भारत में कभी चला करती होगी। बड़ा ही सुन्दर सा अनुभव हो रहा था, लगा कि काफी पहले ही प्रलय आ जानी चाहिए थी। चलो भला हो इस ईसाई धर्म का जिसने 21 मई को ही प्रलय बुला दी। अब अपनी जिन्दगी के हसीन पल यहीं कटेंगे।
टहलते-टहलते दूर तक निकल आये तो देखा कि एक मदर टाइप की लेडी आ रही हैं। पास आईं तो देखा सचमुच में मदर ही थी, सन्त मदर। वही सन्त मदर जिनकी फोटो के रखने से मृत्युलोक में व्यक्तियों के ट्यूमर और अन्य दूसरी बीमारियाँ पूर्णतः ठीक हो गईं थीं। हमने उनको नमन करके कहा-‘‘माता, आपकी फोटो का चमत्कार और वरदान तो हमें प्राप्त नहीं हो सका किन्तु आपके धर्म का प्रभाव हमने देख लिया। हमारा नमन स्वीकारें माता।’’
ये लो हमसे लगता है कि कोई गलती हो गई थी, भयंकर वाली गलती। उन सन्त माता ने चिल्ला कर हमें डाँटा-‘‘चुप रहो बदतमीज, माता तुम्हारे हिन्दू धर्म के भिखारी ही बोलते हैं भीख माँगते में। मैं तो मदर हूँ, जगत मदर। मैं तो मैं, मेरी फोटो भी चमत्कार करती है। है कोई तुम्हारे धर्म में ऐसा चमत्कारी सन्त, महात्मा, साध्वी?’’ और वह चुपचाप वहाँ हमें अकेला छोड़कर निकल पड़ी।
हम चुप, किंकर्तव्यविमूढ़, समझ में नहीं आ रहा था कि ये हमारे मुँह पर तमाचा मार गईं या फिर हमें सच्चाई दिखा गईं। हमारे हिन्दू धर्म में तो कोई ऐसा नहीं है जिसने फोटो के दम पर चमत्कार कर दिये हों और उन्हें समाज ने सहर्ष स्वीकारा भी हो। और देखो तो हमारे बाबाओं, महात्माओं को....लम्बी सी दाढ़ी रखा लेंगे.....लम्बा सा बेढब चोला पहन लेंगे और करने लगे धर्म की बातें। अरे! कहीं इस तरह से होते हैं चमत्कार। अब देखो इस धर्म के प्रचारकों को क्या कमाल है पोशाक में, कोट भी है....लम्बा सा लकदक गाउन भी है। इनके धर्मस्थल भी देखो...बैठने की सुन्दर व्यवस्था, साफ-सफाई और एक हमारे धर्म में, धर्मस्थलों में घुस जाओ तो बैठने की कौन कहे, खड़े होने तक का जुगाड़ नहीं। चारों तरफ पता नहीं क्या-क्या बुदबुदाने का शोर, इस पर भी मन न माना तो लगे घंटा-घड़ियाल-शंख फूँकने। उफ! क्या नौटंकी है हिन्दू धर्म में।
मदर की बातों से मन खिन्न हो उठा। बाबाओं, महात्माओं, साध्वियों को खोजने लगा। जिधर देखो उधर वही बुड्ढे खूसट टाइप के, जिनको देखकर लगता है कि अब इन्होंने महिलाओं की इज्जत लूटी, अभी किसी बच्चे का अपहरण किया। हाँ इधर व्यावसायिकता के दौर में कुछ स्मार्ट बाबाओं का आगमन हुआ किन्तु वे भी कोई चमत्कार न दिखला सके। और साध्वियाँ......थोड़ा सोचना पड़ गया तभी एक नाम आया तो वहाँ की व्यवस्था के सुख को भोगने के लालच में नाम भी जुबान पे नहीं लाये, पता नहीं किस सुविधा में कमी कर दी जाये। एक साध्वी आई भी तो बम फोड़कर चली गई जेल में, चमत्कार दिखा देती फिर कुछ भी कर देती...कम से हिन्दू धर्म का नाम तो हो जाता।
अब तो अपने हिन्दू होने पर जलालत का एहसास होने लगा। हिन्दू है ही क्या, गोधरा में ट्रेन में जलाने के बाद भी हादसे का शिकार बताये जाने वाला; अक्षरधाम मन्दिर में हमले के बाद भी खामोश रहने वाला; अपने आराध्य राम के जन्मस्थल की स्वीकार्यता के लिए अदालत का मुँह ताकने वाला; बाबर-औरंगजेब की संतानों के साथ तालमेल बैठा कर चलने वाला; लगातार होते जा रहे धर्म परिवर्तन के बाद भी सर्व-धर्म-समभाव का भजन गाने वाला....। छी...छी...छी...मैं हूँ क्या...एक हिन्दू...जिसने सिवाय भेदभाव के, कट्टरता, वैमनष्य फैलाने के कुछ नहीं किया।
चलते-चलते सोचा-विचारी हो रही थी कि उस जगत के सर्वशक्तिमान का फरमान चारों ओर गूँजने लगा कि जल्द ही पृथ्वीलोक को बसाया जाना है। सभी को वहाँ जाना जरूरी है, हाँ इतनी छूट है कि अपने-अपने विकल्प दे दें कि किस देश में पैदा किया जाये........। हमने आगे के फरमान को नहीं सुना और दौड़कर सर्वशक्तिमान के दरवार में पहुँच गये। देखा वहाँ महाराज की बजाय महारानियों का जमावड़ा था। कोई इंग्लैण्ड से, कोई अमेरिका से, कोई श्रीलंका से, कोई पाकिस्तान से, कोई दिल्ली से, कोई उत्तर प्रदेश से, कोई तमिलनाडु से, कोई पश्चिम बंगाल से। हमें लगा कि भारत का बहुमत है अपना ही देश माँग लिया जाये पर तभी दिमाग में धार्मिक लहर जोर मार गई। हमने चिल्ला कर कहा-‘‘महारानियो जो भी देश देना हो दे देना पर अगले जनम मोहे हिन्दू धर्म में पैदा न करना। इस धर्म में सिवाय ढोंग के, नाटक के, छल-प्रपंच के, भेदभाव के कुछ नहीं होता....हमें हिन्दू धर्म के अलावा किसी भी धर्म में पैदा कर देना। चाहे ईसाई धर्म में जिसने प्रलय की घोषणा कर उसको सच्चाई में बदल दिया चाहे मुस्लिम धर्म में जिसकी धार्मिक कट्टरता के कारण कभी भी फाँसी की सजा नहीं मिल सकती चाहे.....।’’
‘‘बस...चुपचाप रहो हिन्दू...ये तुम्हारा मन्दिर नहीं, तुम्हारा समाज नहीं, तुम्हारा देश नहीं कि कुछ भी बकवास करते फिरो। यहाँ सब नियम से, समय से होता है। समय आया, नियम बना तो प्रलय आ गई, समय आ जाता, नियम बन जाता तो फाँसी भी हो जाती।’’ महारानियों की कड़क आवाज का गूँजना था कि कई सारे दिग्गी टाइप सिपहसालार खड़े हो गये। हमने मौन लगा जाना ही बेहतर समझा। होंठ बन्द, जुबान खामोश किन्तु मन फिर भी कह रहा था कि अगले जनम मोहे हिन्दू न कीजो।
5 टिप्पणियां:
बहुत करारा....
बहुत शानदार व्यंग्य |
हिंदी जिसे चमत्कार कहे वह अन्धविश्वास और ये कहे तो चमत्कार !!
व्यंग्य बहुत सही है।
एक एक शब्द सही है. हिन्दू अपनी शुतुरमुर्गी सोच के चलते इसी गति को प्राप्त होंगे...
आदमी आदमीयत खो रहा है.
ये क्या हो रहा है.....
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