है उन्हें प्यार मगर जताना नहीं आता है,
दिल के ज़ज्बात को छिपाना नहीं आता है.
वो क़त्ल करते हैं आँखों-आँखों में मगर,
कातिल कहा जाए उन्हें नहीं सुहाता है.
जिस हुस्न के गुरूर में मगरूर हैं वो,
दो-चार दिन में वो भी ढल जाता है.
बिन परवाने के शमा की अहमियत क्या,
इश्क भी उसके दिवाने से निखार पाता है.
वादा आने का झूठा हर बार की तरह,
फिर भी राह उनकी फूलों से सजाता है.
उनको हमारी सनक का अंदाज़ा नहीं,
वो समझते हैं इतराना उन्हें ही आता है.
3 टिप्पणियां:
वाह...
वाह...
आपकी बहतरीन गजल से हम भी गजल हो हो गये
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
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