बुधवार, 6 मार्च 2013

देखते होंगे खुद को आईने में और शरमाते भी होंगे - ग़ज़ल



देखते होंगे खुद को आईने में और शरमाते भी होंगे,
सजाते होंगे मन में हमारे सपने और लजाते भी होंगे.

एक लम्हा मिलन का वो सजाये हैं अपने दिल में,
गुदगुदाते होंगे कभी उन्हें और कभी रुलाते भी होंगे.

ख्वाब में मिलने की कोशिश और नींद आँखों में नहीं,
याद करके हमें रात सारी करवटों में बिताते भी होंगे.

बिना कहे ही बहुत कुछ कहती है उनके गालों की सुर्खी,
पूछने पर सबब चेहरे को हथेलियों से छिपाते भी होंगे.

निहारते हैं घंटों मेरी तस्वीर किताबों में छिपा कर,
और उसे कभी-कभी अपने लबों से लगाते भी होंगे.

मिलते हैं लोगों से वो लबों पर एक चुप सी लगाकर,
बेपर्दा न हो जाये प्यार कहीं सोचकर घबराते भी होंगे.

खुद नहीं करते कभी भूले से मेरी बातों का चर्चा,
ज़िक्र मेरा होने पर ख़ुशी से वो चहक जाते भी होंगे.

उनके हर कदम से उठती है नफासत की खुशबू,
कांधों से ढलकता आँचल पल-पल सँभालते भी होंगे.
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