‘कमीनापंथी’.....‘कमीने’.... ये शब्द देखकर चौंक गये होंगे आप? किसी का भी
चौंकना स्वाभाविक है इन शब्दों पर क्योंकि ये शब्द एक गाली के रूप में प्रयोग किये
जाते हैं। अभी तक ऐसी स्थिति आई नहीं थी कि इन शब्दों को भद्रजनों की भाषा-शैली
में शामिल किया जाये क्योंकि माना जाता रहा है कि गाली तो गाली ही होती है। अब एक
सवाल ये उठता है कि क्या समय की आधुनिक परिभाषाओं में इन शब्दों को स्वीकार कर
लेना चाहिए? यह सवाल एक हमारे मन में ही नहीं घुमड़ता होगा, कभी
न कभी, कहीं न कहीं यह आपको भी परेशान करता होगा। अब करता
रहे परेशान तो करे जिसको ये शब्द समाज में प्रचलित करने हैं वे तो कर ही रहे हैं।
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चलिए, आपको ‘सेक्सी’ शब्द सुनकर
क्या विचार आता है? फिर चौंके? कुछ सालों तक इस शब्द के
मायने कुछ अलग थे। इसके उच्चारण में एक प्रकार की झिझक देखने को मिलती थी। आज ये
शब्द हम बेधड़क होकर इस्तेमाल करते हैं। बड़े हों या फिर छोटे ‘सेक्सी’ के प्रयोग में कोई शर्म किसी को महसूस नहीं होती
है। और तो और सेक्सी शब्द के मायने अब इस रूप में बदले हैं कि हम अपने नन्हे-मुन्नों
के लिए भी इस शब्द को प्रयोग करने लगे हैं। किसी को विशेष ड्रेस पहना देख कर हम
अकसर कह देते हैं कि इस ड्रेस में बड़ा सेक्सी लग रहा है। अकसर हम इस शब्द को मजाक
के रूप में भी इस्तेमाल कर लेते हैं ‘और क्या हाल है,
बड़े सेक्सी बने घूम रहे हो?’ यदि इस शब्द की
सहज स्वीकार्यता के सापेक्ष देखा जाये तो क्या ‘कमीना’
शब्द इतना सहज स्वीकार्य हो पायेगा? छोड़िये, हो
पायेगा का जवाब शायद कोई भी न दे पाये क्योंकि हमारे फिल्म संसार ने लगभग
स्वीकार्यता की स्थिति में तो इस शब्द को लाकर खड़ा कर ही दिया है। याद है आपको वो
गाना-‘मुश्किल कर दे जीना, इश्क कमीना’,
यह गाना बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ा था, चढ़ा
है। कालांतर में इस गाने का विकास-क्रम
बढ़ा और एक फिल्म आ गई ‘कमीने’....। स्वीकार्यता
की ओर एक सशक्त कदम क्योंकि जैसे सेक्सी शब्द की स्वीकार्यता बढ़ी थी ‘मेरी पैंट भी सेक्सी, मेरी शर्ट भी सेक्सी........’
से वैसे ही ‘कमीने’ शब्द की स्वीकार्यता भी बढ़नी चाहिए, इस गीत से। आखिर
मित्रों में आपस में चर्चा होगी चल ‘कमीने’ देख आते हैं। माँ के पूछने पर
बेटी-बेटे कहेंगे-‘माँ दोस्तों के साथ कमीने देखने जा रहे हैं।’
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अब फ़िल्मी दुनिया से इतर नवोन्मेषी राजनैतिक लोग भी इस शब्द
का प्रयोग करने लगे हैं. इससे वे लोग जो फ़िल्मी कलाकारों के बजाय राजनीतिक लोगों
को अपना आदर्श मानते हैं, सहजता के साथ इन शब्दों का प्रयोग कर सकेंगे। आखिर झिझक
खुलने की बात है, वैसे इससे कहीं आगे जाकर झिझक खोलने का काम ‘एआईबी’ शो ने भी
किया है। समझने वाली बात है कि फ़िल्मी दुनिया में अथवा राजनीति में संलिप्त लोग क्या
इन शब्दों के अर्थ नहीं समझते? क्या अब समाज में विकृत मानसिकता को ही
फैलाने का चलन काम करेगा?
कुछ भी हो किन्तु अब आने वाले समय में इस तरह के वाक्यों से
भी रू-ब-रू होने की सम्भावना है ‘‘देखो-देखो मेरे बेटे को, इस ड्रेस में कितना कमीना लग रहा है।’’ ‘‘आज गजब हो
गया, तुम्हारे कमीनेपन ने तो मजा बाँध दिया।’’ हो सकता है कि आपके बच्चे ही आपसे कहें, “क्या कमीनापंथी लगा रखी है” या
फिर “पापा! आज बड़े कमीने लग रहे हो। क्या आप इसके लिए तैयार हैं?”
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डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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ये व्यंग्य दिनांक - 10 अप्रैल 2015 के जनसंदेश टाइम्स के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित किया गया है.
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