लोग एक-एक करके मंच पर आते, माइक पर खखारते और फिर
लम्बी-लम्बी फेंकना शुरू करते. व्यक्ति-विशेष की तारीफ में हॉल के भीतर ही पुल बनाये
जाने लगते हैं. माइक पर शब्दों की लफ्फाजी करता व्यक्ति, बातों
के बताशे फोड़ता हुआ तारीफों के बांधे जाते पुल के सहारे धीरे से कम्पनी प्रबंधन की
तरफ मुड़ जाता. ऐसा वह कम्पनी प्रबंधन की निगाह में आने के लिए करता. आखिर आज मौका हाथ
लगा था. कम्पनी प्रबंधन के चहेते कर्मचारी भगवानदास का विदाई समारोह जो मनाया जा रहा
था. वैसे उनका नाम भगवानदास नहीं था मगर अपने आपको परम ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, भगवान भक्ति में लीन रहने वाला दिखाए जाने
के कारण उनको कम्पनी में भगवानदास के नाम से जाना-पहचाना जाने लगा था.
कम्पनी प्रबंधन के परम चहेते, अतिविश्वस्त भगवानदास आज
कम्पनी से विदा हो रहे थे. कम्पनी के सभी कर्मचारी इस प्रयास में थे कि भगवानदास की
कुर्सी एक दिन को भी खाली न रहे. इसी कारण भगवानदास के साथ-साथ कम्पनी प्रबंधन के गुणगान
किये जा रहे थे. अपनी बात समाप्त करते और मँहगा सा समझ आने वाला उपहार भगवानदास को
थमाते हुए एक अतिरिक्त उपहार कम्पनी प्रबंधक के चरणों में भी अर्पित करते.
अब माइक पर शब्दजाल बिखेरने की बारी मंचस्थ लोगों की आ चुकी
थी. भगवानदास ने सबका शुक्रिया अदा किया. खूब तालियाँ बजीं. इन्हीं तालियों के बीच
कम्पनी प्रबंधक ने आकर सबकी तारीफ की. भगवानदास की विशेष तारीफ की. उनकी जगह खाली होने
का, उनकी कमी
का दुःख भी व्यक्त किया. कम्पनी प्रबंधक की एक-एक पंक्ति पर सारे खूब तालियाँ पीटते.
तालियों के द्वारा वे अपने होने का एहसास प्रबंधक को कराना चाहते थे. असल में इसके
सहारे वे अपना नाम भगवानदास की जगह सुनना चाहते थे. तालियों के शोर के बीच कम्पनी प्रबंधक
ने भगवानदास की सेवाओं, समर्पण, ईमानदारी
आदि की तारीफ करते हुए अपने अधिकारों का उपयोग कर उन्हें सेवा-वृद्धि देने की घोषणा
की. भगवानदास अब नियमित कर्मी न होकर प्रबंधनकर्मी होंगे जो नियत मानदेय पर कम्पनी
को अपनी सेवाएँ देंगे.
अब हॉल में सन्नाटा था. तालियाँ का शोर अचानक थम गया. सब
समझ गए कि भगवानदास का प्रबंधनकर्मी होना, नियत मानदेय पर आना तो बस छलावा है. असल में वे
उन्हीं अधिकारों से लैस होंगे जैसे नियमित सेवा में थे. सब समझ चुके थे कि भगवानदास
विदा होकर भी विदा नहीं हुए हैं.
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