इक मकान में
इक घर कोई,
उस घर में रहते थे
इंसान कई.
घर कहीं लुप्त हो गया है,
अब एक मकान में
बन गए हैं मकान कई.
इंसान कहीं गुम हो गए हैं,
अब एक इंसान में
बन गए हैं मकान कई.
अब कहीं घर नहीं है,
अब कहीं इंसान नहीं है,
अब सिर्फ मकान हैं
क्योंकि इंसान ही मकान है.
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कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र
17.12.2021
1 टिप्पणी:
समाज की वास्तविकता दिखाई देती है एवं वेदना भी
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