ग़ज़ल ---- ज़िन्दगी
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ज़िन्दगी को ज़िन्दगी के करीब लाती है ज़िन्दगी।
कभी हँसाती, कभी जार-जार रुलाती है ज़िन्दगी।।
रेत की दीवार से ढह जाते हैं सुनहरे सपने।
एक पल में हजारों रंग दिखाती है ज़िन्दगी।।
कोई नहीं जानता अंजाम अपने सफर का।
सभी को अपनी मंजिल तक पहुँचाती है ज़िन्दगी।।
नहीं कोई भरोसा है गुजरते हुए वक्त का।
सभी को कटी पतंग सा डोलाती है ज़िन्दगी।।
सहर होने से पहले काली रात के साये हैं।
मिटाने को फासला चाँदनी बन आती है ज़िन्दगी।।
लड़ते हुए अपने आपसे जीना भुला बैठे।
जीने के नये अंदाज सिखाती है ज़िन्दगी।।
बिछुड़ गये थे जो बीच राह में हमकदम।
अनजाने किसी मोड़ पर फिर मिलाती है ज़िन्दगी।।
दूर होकर भी कोई दिल के करीब है हमारे।
तन्हाई में मीठा सा एहसास कराती है ज़िन्दगी।।
10 टिप्पणियां:
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी के करीब लाती है ज़िन्दगी ।
कभी हँसाती, कभी जार-जार रुलाती है ज़िन्दगी ।।
बहुत सुन्दर गजल प्रस्तुति...
तुम्हारी पहली ग़ज़ल का अवलोकन किया .. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...बधाई एवं प्रशंसा के पात्र है आप ..
जिंदगी जिन्दादिली का नाम है ,
मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं
जिन्दगी को परिभाषित करती आपकी ग़ज़ल हकीकत के बहुत करीब लगी.. पहली बार नज़र पड़ी यहाँ..
नहीं कोई भरोसा है गुजरते हुए वक्त का।
सभी को कटी पतंग सा डोलाती है ज़िन्दगी।।
-बहुत खूब...वाह!
सहर होने से पहले काली रात के साये हैं।
मिटाने को फासला चाँदनी बन आती है ज़िन्दगी
बहुत सुन्दर ....गज़ल अच्छी लगी ..
वर्ड वेरिफिकेशन क्यों लगाया है ?
sundar gazal hai sir ji,
badhai.
Rakesh Kumar
sundar gazal hai sir ji,
badhai.
Rakesh Kumar
jindagi ka sach
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
ज़िदगी के कुछ चित्रों को रेखांकित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल।
haqeeqat se rubaru karati apki gazal zindgi ke kareeb lagi.....
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