हम नित हर पल
खुले बाजार की ओर
जा रहे हैं।
तभी तो खुलेआम
अपनी सभ्यता में
खुलापन ला रहे हैं।
पहले एक चैनल से काम चलाते थे,
अब चैनलों की बाढ़ ला रहे हैं।
लगातार देखते
ढँकी-मुँदी अपनी सभ्यता को,
हम बोर हो गये थे,
इसी कारण से
पश्चिमी सभ्यता द्वारा
अपनी संस्कृति को
निर्वस्त्र किये जा रहे हैं।
देखने की लालसा
जो दबी थी सदियों से
मानव मन में,
उसी फूहड़ता को
आधुनिकता की आड़ में
घर के अंदर ला रहे हैं।
लगाकर विदेशी वैशाखियाँ
खुद को खिलाड़ी माने हैं,
पर आधुनिकता के चक्कर में
खुद को
खोखला किये जा रहे हैं।
1 टिप्पणी:
Hi I really liked your blog.
I own a website. Which is a global platform for all the artists, whether they are poets, writers, or painters etc.
We publish the best Content, under the writers name.
I really liked the quality of your content. and we would love to publish your content as well. All of your content would be published under your name, so
that you can get all the credit for the content. For better understanding,
You can Check the Hindi Corner of our website and the content shared by different writers and poets.
http://www.catchmypost.com
and kindly reply on ojaswi_kaushal@catchmypost.com
एक टिप्पणी भेजें