मंगलवार, 12 जुलाई 2011

खोखलापन

हम नित हर पल
खुले बाजार की ओर
जा रहे हैं।
तभी तो खुलेआम
अपनी सभ्यता में
खुलापन ला रहे हैं।
पहले एक चैनल से काम चलाते थे,
अब चैनलों की बाढ़ ला रहे हैं।
लगातार देखते
ढँकी-मुँदी अपनी सभ्यता को,
हम बोर हो गये थे,
इसी कारण से
पश्चिमी सभ्यता द्वारा
अपनी संस्कृति को
निर्वस्त्र किये जा रहे हैं।
देखने की लालसा
जो दबी थी सदियों से
मानव मन में,
उसी फूहड़ता को
आधुनिकता की आड़ में
घर के अंदर ला रहे हैं।
लगाकर विदेशी वैशाखियाँ
खुद को खिलाड़ी माने हैं,
पर आधुनिकता के चक्कर में
खुद को
खोखला किये जा रहे हैं।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

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