गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

बेटी है अपनी, अपने गले लगा के चलो - कविता

बेटी है अपनी, अपने गले लगा के चलो।

लग रही गुमसुम सी, उसे हँसा के चलो।।


दिल है अपना अपनी ही धड़कन,

साँस अपनी और अपना तन-मन।

रूप-स्वरूप उसका जब है अपना सा,

तो फिर क्यों उसको गैर बना के चलो।।


बेटियाँ बेटों से किस तरह है कम,

धरती से आकाश तक पहुंचे हैं कदम।

जोश सागर का है जज्बा हिमालय का,

पल-पल घुमड़ता आह्लाद दिखा के चलो।।


नाम रोशन करेगी वो भी विश्वास करो,

हौसले में उसके प्यार का आधार धरो।

होगा तुमको भी गुमान अपनी बेटी पर,

सफलता उसकी दुनिया को बता के चलो।।

2 टिप्‍पणियां:

warisweb ने कहा…

BHAUT BADIYA HAI SIR .

durgama ने कहा…

it's not just a poetry, it's a dream of every daughter.