अपनों के बीच हो गये हैं कुछ यूं बेगाने से,
हमारे साये ही अब हमारे साथ नहीं चलते।
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हमें रुला सकें नहीं थी ताकत इतनी गमों में,
वो खुशी ही इतनी मिली कि आंसू छलक उठे।
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था पता होगा बहुत ही मुश्किल जिसको पाना,
दिल के अरमान उसी की खातिर मचल गये।
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खो गया अपना वजूद ही अपने लोगों के बीच,
ढूंड़ने अपने आपको गैरों के बीच चल पड़े।
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बिना हमें देखे जो बेचैन हुआ करते थे कभी,
वो ही आज सामने से मुंह फेर कर निकले।
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कल तक बहार थी जिनसे महफिलों की,
देखकर उनको अब सन्नाटे से छाने लगे।
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फकत कांच का टुकड़ा थे हम किसी के लिए,
खुद को उनके दिल का नगीना समझते रहे।
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जिन हाथों ने खुदा बनाया पत्थर तराश कर,
वही हाथ आज पूजा के लायक नहीं रहे।
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