बुधवार, 15 अगस्त 2012

हमारे साये ही अब हमारे साथ नहीं चलते

अपनों के बीच हो गये हैं कुछ यूं बेगाने से,

हमारे साये ही अब हमारे साथ नहीं चलते।

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हमें रुला सकें नहीं थी ताकत इतनी गमों में,

वो खुशी ही इतनी मिली कि आंसू छलक उठे।

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था पता होगा बहुत ही मुश्किल जिसको पाना,

दिल के अरमान उसी की खातिर मचल गये।

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खो गया अपना वजूद ही अपने लोगों के बीच,

ढूंड़ने अपने आपको गैरों के बीच चल पड़े।

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बिना हमें देखे जो बेचैन हुआ करते थे कभी,

वो ही आज सामने से मुंह फेर कर निकले।

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कल तक बहार थी जिनसे महफिलों की,

देखकर उनको अब सन्नाटे से छाने लगे।

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फकत कांच का टुकड़ा थे हम किसी के लिए,

खुद को उनके दिल का नगीना समझते रहे।

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जिन हाथों ने खुदा बनाया पत्थर तराश कर,

वही हाथ आज पूजा के लायक नहीं रहे।

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