रविवार, 10 अगस्त 2014

फ़िज़ूल खर्च - लघुकथा


फ़िज़ूल खर्च
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वह तो ख़ुशी के मारे पागल हुई जा रही थी. उसके दोनों भाई उसके सामने खड़े थे. इस बार रक्षाबंधन पर मायके जाना नहीं हो पाया तो ये सोच-सोच कर दुखी थी कि किसे राखी बाँधेगी? उसके दोनों भाईयों की कलाई सूनी रह जाएगी. उसने बड़ी उमंग से, उत्साह से राखी की थाली सजाई, अपने दोनों भाइयों को टीका करके राखी बाँधी. भाइयों ने उसकी ख़ुशी को और भी बढ़ा दिया जब छोटे भैया ने उसके हाथ में नई स्कूटी की चाबी थमा दी. आँखों में आँसू भरकर वह दोनों भाइयों से लिपट गई. उसे अपने पर गर्व हो रहा था कि उसे ऐसे प्यार करने वाले, उसका ख्याल रखने वाले भाई मिले हैं.
शाम होते-होते उसके दोनों भाई वापस चले गए. शाम होते-होते उसका उत्साह ठंडा पड़ गया. शाम होते-होते स्कूटी मिलने की उसकी ख़ुशी भी चली हो गई. राखी बंधवाई उसके पति ने अपनी इकलौती छोटी बहिन को नई स्कूटी दिलवा दी थी. उसके गुमसुम होने का कारण भी यही था, आखिर उसके पति ने फ़िज़ूल खर्चा जो कर दिया था.
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© कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र 
१० अगस्त २०१४ - रक्षाबंधन 
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चित्र गूगल छवियों से साभार

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