चिल्लाने की रोकथाम
पार्टी उनको लेकर संशय में है, वे
पार्टी को लेकर संशय में हैं और दोनों अपनी-अपनी गतिविधियों को लेकर संशय में हैं.
संशय भी विकट है. पार्टी उनको शत्रु समझ रही है और वे पार्टी को. लोगों में भी
संशय इसको लेकर है कि कौन शत्रु की भूमिका में है और कौन मित्र की भूमिका में है. पार्टी
ने जब उन पर ध्यान नहीं दिया तो वे चिल्ला-चोट मचाने पर उतर आये. उनको कई बार
समझाया भी गया कि हर जगह, हर स्थिति में ऐसे खड़े होकर शोर मचाया उचित नहीं, मगर एक
वे हैं कहते हैं कि खामोश, हम तो हर बार खड़े होकर ही चुने जाते हैं, कभी बैठे-बैठे
नहीं चुने गए सो खड़े रहना हमारा धर्म है. पार्टी के लोगों ने समझाया कि ठीक है खड़े
रहो मगर चिल्ला-चोट तो न करो तो वे फिर चिल्लाये, चिल्लाना भी हमारा नैतिक कर्तव्य
है क्योंकि चिल्लाते-चिल्लाते, नारे लगाते-लगाते ही हम यहाँ पहुँचे हैं.
उनकी बात सही भी लगती है. पहले तो
पार्टी ने उनको चिल्लाने के, शोर मचाने के अवसर उपलब्ध करवाए, फिर उनको खड़ा भी
किया. एक बार नहीं कई-कई बार खड़ा किया. अब जब व्यक्ति को खड़ा रहने की आदत पड़ ही गई
है तो वो खड़ा ही रहेगा, चाहे पार्टी के पक्ष में खड़ा हो अथवा पार्टी के विरोध में.
पार्टी को भी बहुत देर में ये बात समझ में आई कि उनका खड़ा होना, चिल्लाना न तो कम
होने वाला है और न ही थमने वाला है तो पार्टी ने इसका हल निकालने का विचार बनाया. संशय
में पड़ी पार्टी अब फिर से संशय में है कि खड़े किये गए शत्रु को अब किस तरह बैठाने की
व्यवस्था की जाये. यदि इस खड़े व्यक्ति को बैठाया न गया तो लगातार बवाल करता रहेगा.
कभी अपनी पार्टी के विरोध में हल्ला करेगा, कभी जाकर विरोधियों के सुर से सुर
मिलाकर उनके साथ खड़ा होगा. पार्टी है कि उन्हें बैठने के लिए कोई कुर्सी देने के
मूड में नहीं है और वे भी बिना जगह लिए बैठने के मूड में नहीं हैं. ऐसे में पार्टी
और उनके शुभचिंतकों ने बीच की राह खोजी है, जिससे मित्ररुपी शत्रु के बैठने का
इन्तेजाम भी हो जाये और पार्टी को भी कोई कुर्सी खाली न करनी पड़े. मध्यस्थ लोगों
की राय से प्रसन्न होकर पार्टी ने एक धरने की तैयारी कर ली है, जहाँ खड़े हुए
असंतुष्टों को बैठने का, चीखने का अवसर दिया जायेगा. वे भी प्रसन्न हैं कि चलो
पार्टी ने कहीं तो उनको बैठाने का, चिल्लाने का इंतजाम किया. बैठने की, चिल्ला-चोट
करने की इस आधुनिक, तात्कालिक व्यवस्था से वे भी खुश हैं और पार्टी भी राहत की
सांस लेती दिख रही है.
उक्त व्यंग्य दिनांक - 19.01.2016 के दैनिक हिंदुस्तान समाचार-पत्र के सम्पादकीय पृष्ठ पर 'नश्तर' कॉलम में प्रकाशित किया गया है.
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