वेलेंटाइन डे वाली सुहानी नाईट का आनंद अब ख्वाबों में लिया जा रहा था. एकाएक
बज उठती मोबाइल की तेज घंटी ने रोमांसपूर्ण खुमारी में व्यवधान डाला. दूसरी तरफ से
माधुर्य में लिपटी आवाज़ ‘क्यों जी, शादी कब करोगे?’ सुनकर दिमाग चकरा गया. देह के
समस्त तंतु जागृत अवस्था में आ गए. प्रेम-प्यार से बीते एक सप्ताह की सुखद परिणति
हो भी न पाई थी कि ये मोहतरमा शादी तक पहुँच गईं. कैसी वेलेंटाइन मिली, जो प्रेम
का सुख भोगे बिना उसे शादी के जंजाल में मिटाना चाहती है. एक पल में विगत सप्ताह
का सुहाना सफ़र आँखों के सामने घूम गया. गुलाब के लेने-देने से शुरू हुई
प्रेम-कहानी चॉकलेट की मिठास, टैडी की कोमलता का एहसास कराने लगी.
उसी एहसास में एकदम
सोचा प्रेम-खुमारी में कहीं ‘प्रपोज डे’ पर शादी जैसा कोई वादा तो नहीं कर बैठे
थे. फिर याद आया कि नहीं, ऐसा कुछ नहीं किया था. सब कुछ बराबर याद है, यदि प्रेम
में गोते लगाना याद था तो जेब का लगातार हल्का होते जाना भी याद था. और तो और ‘हग
डे’ तक में, जहाँ कि सिर्फ गले लगना-लगाना था, उस दिन भी जेब ढीली हो गई थी. चूँकि
साप्ताहिक प्रेम कहानी की बात थी, सो एक-एक दिन पर्स को लगातार हल्का करवाते हुए
हमारी प्रेमयात्रा वेलेंटाइन डे के मुहाने ले जा रहे थे. एक कॉल पर जहाँ बीते सात
दिनों का रोमांस याद आया वहीं भविष्य में रोमांस के फुर्र होने की भयावहता भी दिख
गई थी. शादी, बच्चे, सब्जी-भाजी, रोज की झिक-झिक और भी न जाने क्या-क्या.
‘क्या
हुआ, कुछ बोलते क्यों नहीं’ जैसा थोड़ा तेज सा स्वर दूसरी तरफ से फिर उभरा. सामने
वाली मैडम जी से क्या बोलते, कि अभी हम शादी के मूड में नहीं हैं, आज तो
पोस्ट-वेलेंटाइन डे मनाने के मूड में हैं. समझ नहीं आ रहा था कि ये प्रेम में शादी
कहाँ से बीच में आ गई. इस धर्मसंकट की स्थिति में फिर से बाबा वेलेंटाइन याद आये.
याद आये उनके नाम पर बाज़ार द्वारा बनाये सात दिन और ये भी याद आया कि कहीं एक भी
दिन शादी के लिए नहीं है. सीधा सा मतलब था कि वेलेंटाइन पर सबकुछ करो, बस शादी न
करो. पूरी तरह से अपने को बाबा वेलेंटाइन की शरण में धकेलकर हमने ‘हैल्लो, हैल्लो,
जोर से बोलो, आवाज़ नहीं आ रही, दोबारा मिलाओ’ जैसे छोटे-छोटे वाक्यों का सहारा
लेते हुए मोबाइल स्विचऑफ किया.
इसके बाद पहले तो मोबाइल कंपनी के आये दिन
बनते-बिगड़ते नेटवर्क को धन्यवाद दिया और फिर बाबा वेलेंटाइन को धन्यवाद दिया,
जिन्होंने प्रेम-रोमांस के लिए सात दिनों का निर्धारण बाज़ार के हाथों अवश्य करवा
दिया किन्तु किसी भी रूप में शादी वाला दिन फिक्स न करवा कर न जाने कितनी
प्रेम-गाथाओं को असमय सूखने से बचा लिया. जय हो बाबा वेलेंटाइन का जयकारा लगाकर हम
फिर वेलेंटाइन की खुमारी में डूब गए.
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