मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

ब्याज पर बट्टा - व्यंग्य

‘माया महाठगिनी हम जानी’ के अमरघोष के बाद भी माया लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र सदैव बनी रही. इस मायामोह के चक्कर में लोग ज्यादा न फँसें, ज्यादा न बहकें इसके लिए समाज के ज्ञानी-ध्यानी बुजुर्गों ने ब्याज को हराम बताते हुए लोगों को इससे दूर रहने की सलाह दी. समाज ने इसे माना-स्वीकारा भी और एक लम्बे समय तक ब्याज के धन को अपनी-अपनी जेब से दूर रखा. परिवर्तन तो प्रकृति का सत्य है सो समाज में भी परिवर्तन दिखा. ज्ञानी बुजुर्ग लुप्त होते गए, ब्याज पाने की लालसा वाले जन प्रकट होते गए. ब्याज की रकम को वैधता प्रदान करने के लिए, उसके ऊपर से हराम की कमाई का काला ठप्पा हटाने का प्रयास किया गया. इस प्रयास में लोगों ने ‘मूल से अधिक सूद प्यारा होता है’ का नया नारा पेश किया. इस नारे को और भी व्यापक बनाने की नीयत ऊपर बैठे लोगों में भी दिखी. 

आखिर धन-लिप्सा तो उनके भीतर भी थी. सो जनता की चाहत और आकाओं की नीयत ने मिलकर एक नया रूप निर्माण किया. दीर्घ बचत, अल्प बचत, लघु बचत के नए-नए कलेवरों के माध्यम से ब्याज की रकम जेब के अन्दर करने का सर्व-स्वीकार्य कार्य नीचे से ऊपर तक किया गया. बुजुर्गों की नसीहत के अपराधबोध से निकल कर अब बचत के नाम पर ब्याज की रकम खूब अन्दर की जाने लगी. बचत की बचत, ब्याज का ब्याज, रकम पर रकम और कहीं से भी बिना मेहनत की कमाई का अपराधबोध भी नहीं. क्या खूब दिन थे, ‘पाँचों उँगलियाँ घी में और सर कड़ाही में’ था. 

तभी अचानक भूचाल सा आ गया. ज्ञानी-ध्यानी बुजुर्गों की आत्मा ने पुनर्जागरण किया. ब्याज दिए-लिए जाने में त्रुटिपूर्ण कृत्य दिखाई दिया. ऐसी आत्माओं ने तत्काल, विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए किसी भी रूप में जेब के अन्दर की जा रही ब्याज की कमाई पर अपना रोष प्रकट किया. प्राचीनता का अनुपालन करते हुए ब्याज को रोकने का उपक्रम शुरू किया. यद्यपि वे जनभावनाओं को समझते थे तथापि एकदम से कुल्हाड़ी न चलाते हुए महीन से कैंची चला दी. ऐसी कैंची, जिससे जेब भी न कटे और ब्याज की रकम भी पूरी न मिले. इधर लोग ब्याज की रकम से मौज मनाने के मूड में थे उधर बुजुर्गियत भरी आत्माओं ने विकास-विकास कहते हुए रंग में भंग कर दिया. 

1 टिप्पणी:

girish pankaj ने कहा…

शानदार-धारदार व्यंग्य. सरकार की मानसिकता और जन विरोधी निर्णय पर सामयिक कटाक्ष हैं. भाषा अलंकारिक है.. बहुत कुछ अमूर्त-सा है, पर मर्म को समझने वाले समझ लेंगे