आखिर ठुल्ला कहने
पर इतना बवेला क्यों? किसी भी बात के कई पहलू हो सकते हैं. कुछ ऐसा ही इस शब्द में
भी है, बस गौर करने की जरूरत है. ठुल्ला या कहें ठलुआ, बात घूम-फिर कर एक ही अर्थ
देती है. अब इसकी आवश्यकता अगले व्यक्ति को क्यों आन पड़ी ये भी समझना होगा. अगले व्यक्ति
ने ठुल्ला शब्द से हिन्दी वर्णमाला को संशोधित करने का पुनीत कार्य आरम्भ किया है.
इसके द्वारा एक ऐसे शब्द को प्रतिस्थपित करने का प्रयास है जो अब समाज में दिखता
ही नहीं. इसके बाद भी हिन्दी वर्णमाला में उसे नियमित रूप से पढ़ाया जा रहा है. जी
हाँ, कई-कई पीढ़ियाँ हिन्दी पढ़ते-सीखते में ठ से ठठेरा ही पढ़ती रही. जिस पीढ़ी ने
ठठेरा देखा उसने भी पढ़ा. जिस पीढ़ी ने ठठेरा सुना उसने भी पढ़ा. अब जिस पीढ़ी ने न
ठठेरा सुना, न देखा वो भी ठ से ठठेरा पढ़ रही है. ये स्थिति तो शब्दों के साथ दोयम
दर्जे का बर्ताव करने जैसी है. आखिर ऐसे किसी शब्द की आवश्यकता ही क्या है जिसका
परिचालन ही समाज में न हो रहा हो. कितनी बड़ी विडम्बना है कि समाज में कहीं ठठेरा
दिख नहीं रहा इसके बाद भी पढ़ाया जा रहा है. आखिर भिश्ती नहीं दिखता सो पढ़ाया भी
नहीं जा रहा. मसक नहीं दिखती सो उसे भी नहीं पढ़ाया जा रहा है. खेतों में रहट नहीं
दिखाई देते इसलिए वे भी गायब हैं. भाषा में, शब्दों में ऐसे परिवर्तन होते रहने
चाहिए. इससे शब्द-सम्पदा का विकास तो होता ही है, ज्ञान में भी समकालीनता आती है.
कुछ शब्द सामाजिक
परिवर्तन के चलते अपने आप बदल गए. या कहें कि विकसित होकर आ गए. फटफटिया कब
मोटरसाइकिल बनी और कब बाइक बनकर हमारे बीच दौड़ने लगी, पता ही नहीं चला. इसी तरह से
तश्तरी गायब हो गई सिर्फ प्लेट बची. अम्मा गायब होकर मम्मी से मॉम हो गई. वैसे ये
भी एक तरह का विकास है. इसमें कम से कम जो शब्द बोले जा रहे हैं, जिनके लिए बोले
जा रहे हैं उनका कोई अस्तित्व तो है ही. ये कितना ख़राब है कि जिस शब्द के बारे में
पढ़ रहे हैं वो अस्तित्व में ही नहीं है. उसका ओर-छोर ही नहीं है. ऐसे शब्दों का
विलोपन करके नए-नए शब्दों को स्थापित करना चाहिए. ऐसे शब्दों को पढ़ना-पढ़ाना चाहिए
जिनका कोई अस्तित्व हो. भाषा-वैज्ञानिकों को इस तरफ प्रयास करने चाहिए थे किन्तु
नहीं किये.
एक व्यक्ति ने
अपनी पूरी ताकत लगाकर ठ से ठठेरा के स्थान पर ठ से ठुल्ला को प्रतिस्थापित करने का
प्रयास किया है. ठुल्ला शब्द को ठलुआ अपभ्रंश मान सकते हैं अर्थात हिन्दी के
क्रमिक विकास का अनुपालन करते हुए ही नए शब्द का निर्माण किया गया है. एक ऐसे शब्द
को पुनर्जीवित किया गया है जिसका अस्तित्व समाज में मिलता है. इस शब्द-परिवर्तन पर
उसका स्वागत होना चाहिए. यहाँ स्वागत के बजाय अदालत से नोटिस जारी हो रहे हैं. किसी
की अस्मिता को ठेस पहुँच रही है. अब ठ से ठठेरा की जगह ठ से ठुल्ला पढ़ाया जाना
चाहिए. इससे तमाम माता-पिता अपने बच्चों के उन सवालों की मार से बच सकेंगे जो
ठठेरा को जानने के लिए उछालते थे. बच्चों को भी सहजता से ठ से ठुल्ला के बारे में बताया
जा सकेगा, ठुल्ला के बारे में समझाया जा सकेगा. शाब्दिक सम्पदा के इस विस्तार को
प्रोत्साहित करना चाहिए. आने वाले दिनों में हिन्दी वर्णमाला में ठ से ठठेरा की
जगह ठ से ठुल्ला पढ़ने को मिले, यही कामना करते हैं.
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