आँख खुलते ही श्रीमती जी को चाय के लिए आवाज़ लगाई. सुबह से तीसरी बार आँख खुली है. लॉकडाउन के कारण न सुबह का समय रह गया और न रात का. रात को जल्दी सोने की कोशिश में देर रात तक बिस्तर पर जाना हो पाता है. जल्दी सोने की कोशिश इसलिए क्योंकि सुबह जल्दी उठकर फिर सोना होता है. लॉकडाउन कुछ और करवा ही नहीं रहा. बस सो जाओ, जाग जाओ, फिर सो जाओ, फिर जाग जाओ. इसी सोने-जागने के बीच में खाना-पीना भी हो जाता. समझने वाली बात है, पीना-खाना नहीं हो पा रहा था, बंदी के कारण. बस खाओ और पियो. कभी पानी, कभी चाय.
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए लॉकडाउन में घरबंदी में दिन-रात आराम से गुजर रहे थे. लोगों को लग रहा था कि वे संक्रमण से बचे हुए हैं मगर ऐसा नहीं था. कोरोना से ज्यादा खतरनाक वायरस लॉकडाउन में भी घर के अन्दर घुस चुका था. यकीन नहीं आपको? देखिएगा अपने आसपास, कहीं आप भी तो उस वायरस की चपेट में तो नहीं आ गए? ये वायरस है जलेबियाँ बनाने का. चौंक गए न? आप भी संक्रमित हैं क्या इससे?
लॉकडाउन में घर के पलंग तोड़ते, सोफों का आकार बिगाड़ते, कुर्सियों को रुलाते हुए सोशल मीडिया का जमकर दोहन किया जा रहा है. इसी में जलेबी वायरस ने घुसकर सबको संक्रमित कर दिया. जिसे देखो वो जलेबियाँ बनाने में लगा हुआ है. अरे बनाने को और भी बहुत कुछ है. पूरी बना लो, रोटी बना लो, सब्जी बना लो, बहुत ज्यादा क्रिएटिव करने का मन है तो हलवा बना लो, खीर बना लो, रायता बना लो मगर नहीं, जनाब बनायेंगे तो जलेबी ही. समझ नहीं आया कि आखिर ऐसा कैसा जलेबी-प्रेम है इनका कि महीने, दो महीने रुका न जा रहा. ऐसा लग रहा जैसे रोज जलेबी ही खाते रहे हैं. ठीक है भाई, बनाना है खूब बनाओ, खाना है खूब खाओ पर क्या जरूरी है उसे सोशल मीडिया पर शेयर करने की. पर नहीं, खुद तो मौज ले नहीं रहे, दूसरों को मौज में जीने नहीं दे रहे.
समझ नहीं आ रहा था कि लोग संक्रमण से बचने के लिए अपने घरों में कैद हैं या दूसरों के घरों में कलह पैदा करने के लिए? लॉकडाउन में पकवान, व्यंजन बनाने का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो ये लॉकडाउन वीर हलवाइयों का, रेस्टोरेंट वालों का, छोटे-मोटे खोमचे वालों का व्यापार बर्बाद करवा के ही मानेंगे. अरे करमजलो, ध्यान रखो, ये लॉकडाउन तुमको कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए लाया गया है हलवाइयों का व्यापार चौपट करने के लिए नहीं, लोगों की शांत ज़िन्दगी को तहस-नहस करने के लिए नहीं.
अभी तक तो ठीक था पर इस जलेबी वायरस ने आकर सब छिन्न-भिन्न कर दिया. घर में जलेबी वायरस ने अपनी घुसपैठ कर ली. कोरोना वायरस से बचाव का तरीका लॉकडाउन या फिर क्वारंटाइन तो है मगर इस जलेबी वायरस से बचने का कोई तरीका नहीं. इसका सोर्स भी हमने पता कर लिया. सोर्स भी अपने ख़ास हैं जो रोज पता नहीं किस तकनीक से जलेबी बनाकर अपनी भाभी जी को भेजकर हमारे जी का जंजाल बनाये देते हैं.
अब कोस रहे उस पल को जब हमने अपने दोस्तों को सपत्नीक एक ग्रुप से जोड़ते हुए सबके बीच प्रेम, समन्वय, स्नेह पैदा करने का विचार किया था. आज उसी ग्रुप में हमारे सबसे आलसी, नाकारा मित्र का वीडियो पड़ा था, जलेबी वायरस से संक्रमित होने का. जब तक ये वीडियो नहीं आया था तब तक तो इस जलेबी वायरस से किसी न किसी तरह खुद को बचा रखा था मगर आज इसने अपनी तीव्रता दिखा ही दी.
आँख खोलते ही जैसे चाय की माँग हुई वैसे ही धमाका हुआ पहले जलेबी बनाने का. पलंग से गिरते-गिरते बचे. ये कहो कि कुर्सी पर या सोफे पर नहीं थे वर्ना गिर ही जाते. सामान के न होने, खमीर न उठने की, तकनीक न जानने की तमाम दवाओं का सहारा लिया मगर जलेबी वायरस ने पूरी तरह से श्रीमती जी को अपनी गिरफ्त में ले रखा था. सब कुछ तैयार है, बस जलेबी बनाना भर है का फरमान सुनाया गया. इसके साथ ताना ये मारा गया कि जब आपके ये मित्र बना सकते हैं तो आप काहे सकुचा रहे?
हमें अपने मित्र की काबिलियत पर भरोसा था सो वीडियो को कई-कई बार देखा. याद आ गया कि पिछले साल उसके घर में किसी कार्यक्रम के दौरान जलेबी बनाते हलवाई को अलग कर उसने बनी-बनाई जलेबी के साथ अपना वीडियो बनवाया था. श्रीमती जी को हकीकत बताते हुए बहुत समझाया कि ये खाना बनाने आया हलवाई बना रहा है न कि हमारा दोस्त मगर जलेबी वायरस के संक्रमण ने उन्हें नहीं छोड़ा.
आज की चाय और भोजन जलेबी बनने के बाद ही के अल्टीमेटम के बाद तो हमें वेंटिलेटर पर चढ़ाने जैसे हालात बन गए. जलेबी वायरस से बचने के लिए, लॉकडाउन में एक और लॉकडाउन झेलने के तनाव से बचने के लिए हामी भर दी. किचन से श्रीमती जी के द्वारा चाय बनाने की खटर-पटर सुनाई देने लगी और हम गुस्से में मोबाइल के द्वारा उस नामाकूल मित्र को ग्रुप में कोडवर्ड के द्वारा और पर्सनल पर सीधे-सीधे भयंकर-भयंकर वाली गालियाँ टाइप करने लगे.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
4 टिप्पणियां:
हा हा हा हा हा जलेबी वायरस की मिठास ने तो दिन की शुरुआत ही बहुत मनोरम कर दी सर | आपने जो व्यंगय का मीठी चाशनी में डुबा डुबा कर जलेबी बनाई है उसे पढ़ते हुए हमारा आनदं दूना हो गया राजा साहब | हमने कभी नहीं बनाई जलेबियाँ | लगता है अब एक दिन हमें भी इस वायरस से ग्रस्त होना ही पडेगा | आपने सच कहा है की दिन रात को पता ही नहीं चल रहा
बच के रहिएगा, इस वायरस से. सबको बुरी तरह से पकड़ में ले रहा है.
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