मंगलवार, 19 मई 2020

घूँट-घूँट ज़िन्दगी


खाना खाने के बाद वे दोनों टैरेस पर आकर खड़े हो गए. अपने-अपने एहसासों को अपने अन्दर महसूस करते हुए दोनों ही ख़ामोशी से बाहर चमकती लाइट्स को, काले आसमान को, उनमें टिमटिमाते तारों को देखे जा रहे थे. उनकी ख़ामोशी के साथ चलती प्यार भरी लहर में घड़ी ने अवरोध पैदा किया. उसने ग्यारह बजने का संकेत किया. घड़ी की पर्याप्त ध्वनि के बाद भी उसने अपनी घड़ी पर निगाह डालकर चलने की मंशा जताई.

रुक नहीं सकती? उसकी आवाज़ इन तीन शब्दों के साथ जैसे जम गई हो.

उसने कुछ कहा नहीं. आगे बढ़कर उसकी दोनों हथेलियों को अपनी हथेलियों में थामकर एक सवाल उसकी आँखों के रास्ते दिल की गहराइयों में उतार दिया, जब रोकना था तब तो रोका नहीं.

एक पल को आँखों में आँखें डालकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे उसके पास कुछ भी कहने को नहीं. जैसे उसे किसी अपराध-बोध ने जकड़ लिया हो.

उस समय की याद न दिलाओ. मैं आज तक तुम्हारा दोषी हूँ. इसके बाद भी कहता हूँ, आज रुक जाओ, आगे तुम्हारी मर्जी. उसने जैसे खुद को किसी गहरे अंधकार में पाया. पिछले कुछ घंटों की चमक उसके चेहरे से एकदम गायब सी समझ आई.

एएएए.... इसलिए नहीं कहा था कि तुम एकदम से सेंटिया जाओ. सॉरी, तुमको परेशान करने की मंशा नहीं थी. कैसे निकल गई वो बात, पता नहीं. कहते हुए उसने अपनी चिर-परिचित हँसी से पूरे टैरेस को चहका दिया.
रुकने का सोच के नहीं आई थी. कपडे भी नहीं लाई चेंज करने के हिसाब से. कह कर वह वहीं पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गई.

अरे, तो रात में रुकने के लिए कपड़ों की क्या जरूरत. उसने ठहाका लगाते हुए एक आँख झपका दी.

रुको, अभी बताती हूँ तुमको. फिर दोनों सबकुछ भूल कर पुराने दिनों की तरह एक-दूसरे से उलझ गए.

मन उसका भी रुकने का था. खूब सारी बातें करने का था बस वह जैसे उसे परेशान करने के लिए ये सब कर रही थी. कुछ देर बाद वह उसके कुरते और लुंगी को पहन कर टैरेस में आकर बैठ गई. यह उसकी उन दिनों भी आदत में शामिल था. कभी-कभी उसके कमरे में रात को रुकने पर उसी का कुरता और लुंगी पहनना पसंद करती थी. आज वह फिर उसी ड्रेस में खुद को उन्हीं पुराने दिनों में खोया-खोया सा महसूस कर रही थी.


इतनी देर में वह कॉफ़ी बना लाया. उसे अपने कुरते-लुंगी में देखकर चेहरे पर एक मुस्कान लाकर कॉफ़ी का मग उसकी तरफ बढ़ा दिया. कॉफ़ी पीते-पीते दोनों पुराने दिनों में खो गए. बातों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था. रात भी जैसे उनकी कहानियाँ सुनने के लिए बैठी थी. समय गुजरता जा रहा था मगर रात गुजरती महसूस नहीं हो रही थी. एहसासों की कश्ती में बैठकर दोनों बहुत दूर निकल चुके थे. अब उनके सामने जगमगाता आसमान था, हिलोरें मारता सागर था और टिमटिमाते सितारों की रौशनी.

उनकी यादों के साए कभी उनको हँसाते, कभी भावनाओं का ज्वर उमड़ता तो आँखों को नम कर जाता. बात करते-करते वह उठी और दीवान पर आकर उसके बगल में बैठ गई. एक पल को ऐसा लगा जैसे शब्दों की ध्वनि के बीच कितनी गहरी ख़ामोशी लिए वह बैठी है. हँसती-बोलती आँखें जैसे एकदम से सुनसान हो गईं हैं. उसका बोलना, बात करना एकदम से रुक गया. इससे पहले वह कुछ कहता-पूछता वह उसकी गोद में सिर रखकर लेट गई. ख़ामोशी ने जैसे सबकुछ कह दिया. शब्दों की जगह साँसें आगे की कहानी कहने लगीं.

उसने अपनी हथेली में उसके दोनों हाथों को कैद कर लिया. एक हाथ से उसके खुले बालों को सहलाते हुए वह रात को और गहराने लगा. बंद आँखों से बहती आँसुओं की धार को वह अपने दिल पर, अपनी आत्मा पर महसूस कर रहा था. उसने बाल सहलाते हाथों की गति बनाये रखी और आँखें बंद करके सिर पीछे दीवार पर टिका लिया. खामोशियों के बीच एहसासों की बारिश करते-करते कब दोनों गुलाबी सुबह के द्वार पर पहुँच गए, इसका भान न रहा.

टैरेस पर आती धूप और चिड़ियों की चहक ने दोनों की भावनात्मकता को अपने स्वर दिए. मुस्कुराते हुए वह बैठ गई. उसकी हथेलियों और बालों को अपने हाथों से मुक्त करते हुए उसने दोनों हथेलियों के बीच उसके मुस्कुराते चेहरे को थाम लिया. उसकी आखों में जन्मों का इंतजार, होंठों में सागरों की प्यास बेकरारी से मचल रही थी. अपनी हथेलियों में सजे उसके चेहरे की तरफ उसने बढ़ते हुए उसके माथे पर अपने गुलाबी दस्तक दी. एक पल को सुनहली सुबह की आभा, इधर-उधर बिखरी शबनम उनके होठों पर बिखर कर एक-दूसरे के होंठों पर सँवर गई.  

यादों और एहसासों की कैद से मुक्त होकर वे दोनों वर्तमान के साथ अपना तारतम्य बिठाने लगे.

तैयार हो जाऊँ फिर चाय मैं बनाऊँगी. तुम भी फ्रेश हो जाओ. कहते हुए वह बाथरूम की तरफ मुड़ गई.

जब ज़िन्दगी भर के लिए रोकने का अवसर था, तब न रोक कर एक अधिकार खो दिया था. फिर भी यदि हो सके तो कांफ्रेंस समाप्त होने के बाद एक दिन के लिए रुक जाना. उसने इसके जवाब में बिना कुछ कहे उसके हाथों पर अपनी हथेलियों के मखमली एहसास का अनुभव करवा कर अपने कदम कांफ्रेंस हॉल की तरफ बढ़ा दिए. वह ख़ामोशी से, नम आँखों के साथ उसे एक बार फिर अपनी ज़िन्दगी से जाता हुआ देखता रहा.  


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(लिखी जा रही प्रेम कहानियों सम्बन्धी पुस्तक में से )
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

12 टिप्‍पणियां:

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत संयमित और संतुलित पूर्व प्रेम को दर्शाती कहानी अच्छी लगी ।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपको पसंद आई मतलब कोशिश सफल रही हमारी

Enoxo ने कहा…

वाह ! मजबूत लेखन और एक ऐसा प्रवाह जिसमे पढ़ते वक्त मानो बहते ही रहे ..... अद्भुत

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपका कहानी के साथ इस रूप में जुड़े रहना, प्रेरित करता है आगे लिखने को।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अच्छी कहानी ... संवेदनाओं से भरपूर ...

अजय कुमार झा ने कहा…

अहा , मैं तो एक ही साँस में पढ़ गया सारा । ख़ूबसूरत बिल्कुल इश्क जैसा ।

Bharat Thakur ने कहा…

प्रेम की एक और गाथा अती उत्तम
https://yourszindgi.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

Avanindra singh jadaun ने कहा…

कभी बताए नहीं आप

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आभार

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

इश्क ही इश्क जैसा असर करता है

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आभार

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

कभी पूछा ही नहीं तुमने