गुरुवार, 3 मार्च 2022

युद्ध के कब्जे में दिल-दिमाग

सुबह-सुबह चाय से पहले समाचार-पत्र की चुस्की लेने के लिए जैसे ही उसे उठाया, प्रथम पृष्ठ की खबर देखकर दिमाग भन्ना गया. जिसकी आशंका भी नहीं थी वो खबर बड़े-बड़े अक्षरों में आँखों के सामने चक्कर काटने लगी. दो देशों की युद्ध वाली स्थिति लम्बी खिंची तो गेंहू का संकट पैदा हो जायेगा, इस खबर ने उतना ज्यादा परेशान न किया जितना इसके नीचे लिखी लाइन ने किया. इसके नीचे ही असल खबर दी गई थी कि ऐसा होने के कारण बीयर के उत्पादन पर असर पड़ेगा. उसके मँहगे होने की सम्भावना है.


ऐसा पढ़ते ही चाय, समाचार-पत्र आदि सब भूल बैठे. एक ही शौक पैदा कर पाए बचपन से अभी तक और बसपन का प्यार दो देशों की मगजमारी में मुश्किल में फँसता दिखाई देने लगा. तुरत-फुरत दिमाग ने आदेश दिया कि दुकानें खुलते ही दस-बारह पेटियाँ लेकर रख लो. बाद की बाद में देखी जाएगी. दिमाग के आदेश पर दिल प्रसन्न होता, उससे पहले ही दिमाग ने डरा दिया. याद आया कि एक दिन बाद मतदान होने के कारण दुकानें तो पिछली शाम से बंद हैं. अब? दिल ने सवाल उछाला तो दिमाग ने उसको सांत्वना दी कि कोई बात नहीं, मोहल्ले में उस बड़े कारोबारी से सम्पर्क कर लो, जो इसी अमृत-रस का व्यापार करता है.




चेहरे पर खुशियों की क्रीम पोत कर बाहर निकल उसकी कोठी के पास तक पहुँचे तो देखा कि उधर धमाचौकड़ी मची हुई थी. समझ नहीं आया कि ये क्या हो रहा है? हमारे सामने वाली लेन में बनी उस शानदार कोठी के सामने कुछ असहज सी हरकतें हो रही थीं. यह शानदार कोठी उसी व्यापारी की है, जिसकी कई दुकानें अमृत-रस का वितरण करती हैं. आँखों को जरा स्टाइल में उस तरफ घुमाकर मौके का मुआयना किया. आपको बताते चलें कि आँखों को स्टाइल में इसलिए घुमाना जरूरी था क्योंकि उस शानदार कोठी का मालिक जबर टाइप का है और यदि उसकी नज़रों को सामने वाले की नज़रों का देखा जाना पसंद न आया तो बस कुत्तों को दौड़ाकर जगह-जगह से कटवा देता है.


स्टाइल में घूमती आँखों ने देखा तो उस कोठी का मालिक या उसका कोई कारिन्दा नजर नहीं आया मगर कुछ बाहरी मानुस जरूर दिखाई दिए. वे सबके सब उस शानदार कोठी से सटे घर के मालिक के साथ खड़े कुछ बतियाने में लगे थे. वैसे वे सब बतिया कम रहे थे, चिल्ला ज्यादा रहे थे. जब लगा कि कुछ विशेष बात नहीं है तो स्टाइल मारती आँखों को वापस सामान्य मुद्रा में लाये और ये सोच कर घर की तरफ वापस लौट आये कि शाम को बात करते हैं उसके किसी व्यक्ति से.  


सोशल मीडिया के अपने बहुत ही जिम्मेवाराना कर्तव्यों का निर्वहन करने के बाद जैसे ही सोने का मूड बनाने की कोशिश की तो मोहल्ले की सडकों पर हंगामा जैसा समझ आने लगा. खिड़की खोलकर देखने की हिम्मत न हुई, लगा कि कहीं किसी खुराफाती चक्कर में कोई बम, गोली खिड़की के रास्ते दिमाग में न घुस जाए. वैसे दिमाग ही सही जगह होता तो आधी रात के बाद तक जागने कि जरूरत ही न होती. बहरहाल, खिड़की तो न खोली, चुपचाप पैरों में बिना चप्पल फँसाये ड्राइंग रूम की तरफ आहिस्ता-आहिस्ता चल दिए. अब आपको ये भी बताना पड़ेगा कि चप्पल क्यों न पहनी, आहिस्ता-आहिस्ता क्यों चले? समझ लो यार, आप भी शादीशुदा होगे, नहीं हो तो समझ जाओगे किसी दिन. हम ये बताने में समय और स्थान बर्बाद न करेंगे.


हाँ तो, हम चले ड्राइंग रूम की तरफ क्योंकि वहीं से सीसी टीवी कैमरे का नियंत्रण रखा जाता था, सो बाहर की सारी उठापटक वहीं स्क्रीन पर दिख जाती. ओ तेरी, ये क्या, सड़क पर उस कोठी वाले के कुत्ते छुट्टा दौड़ने में लगे थे. अभी शाम के समय जो बाहरी तत्त्व उसी कोठी के सामने खड़े दिखे थे, वे इधर-उधर भागने में लगे थे. कोई मकानों की दीवारों पर चढ़ रहा था, कोई बाहर बने लॉन में कूद कर अपनी जान बचा रहा था. कोई दौड़ते-दौड़ते कुत्तों से बचने की कोशिश में लगा था. और यारो क्या गज़ब फुर्ती थी उन कुत्तों में. कभी किसी के ऊपर मिसाइल सा कूद जाते, कभी किसी पर गोला-बारूद सा धमाका कर देते. भागादौड़ी, काटापीटी, खून-खच्चर देखते हुए हमने स्क्रीन ऑफ की और दबे पाँव वापस आकर बिस्तर में घुसे ही थे कि हमारा दरवाज़ा जोर-जोर से पीटे जाने की आवाजें आने लगीं.  


ऐसा लग रहा था जैसे गोलियाँ बरस रही हों, बम चल रहे हों. उनकी आवाज़ से घबरा कर अपने कानों को दोनों हाथों से दबाने की कोशिश की तभी श्रीमती जी की चीखती आवाज़ सुनाई दी, बाहर देखो कोई आया है. एक झटके में आँख खुल गई. आसपास देखा तो सुबह का उजाला फ़ैल रहा था. दरवाजे पर अभी भी कोई अपने होने की सूचना खटखटाते हुए दे रहा था. अनमने भाव से बिस्तर से निकल कर दरवाजे की तरफ बढ़े तो टीवी पर एंकर चिल्ला-चिल्ला कर दो देशों के युद्ध में परमाणु बम के इस्तेमाल की आशंका जता रहे थे. समझ आया कि ये युद्ध दिमाग पर कब्ज़ा कर चुका है. अब सपने में देखी गयी बीयर की कमी से ज्यादा आशंका मानवता की कमी की लगने लगी.

लगातार युद्ध, युद्ध करते रहने, पढ़ते रहने, देखते रहने के कारण वही स्थिति दिमाग पर चढ़ चुकी थी. अब परमाणु हमले की आशंका ने दिल को भी डरा दिया था. एक बार लगा कि काश! नींद में ही बने रहते. कम से कम सपने में बीयर बचाने के लिए ही परेशान हो रहे थे, अब जागने पर मानवता बचाने के लिए भले परेशान हों पर उसे बचा नहीं पायेंगे.

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