सोमवार, 19 जुलाई 2010

कहानी --- कतरा-कतरा ज़िन्दगी --- भाग तीन

आज कहानी का तीसरा भाग
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कतरा-कतरा ज़िन्दगी

डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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हरिया और राघव को चुप देखकर रामदेई ने फिर सवाल दागे-‘‘का भओ, कछु बोलत काये नईंयां? कछु हो तो नईं गओ?’’

‘‘अब घरे घुसन देहौ कि नईं, कि इतईं दरवाजई पै अदालत लगा लैहो?’’ हरिया एकदम से खीझ उठा।

रामदेई को यह बात बुरी लगी। हरिया और रामदेई में आपस में तनातनी होते देखकर राघव घर के भीतर चला गया। हरिया बड़बड़ाता हुआ वहीं चबूतरे पर बैठ तम्बाकू मलने लगा। रामदेई चुपचाप अपने में बड़बड़ाती हुई भीतर चली गयी।

खाना खाते समय सभी के बीच शांति सी बनी रही। रामदेई ने मिट्टी खुदने की, अवध की बातों की कोई चर्चा नहीं की और न ही हरिया या राघव ने कोई बात रामदेई के सामने रखी।

‘‘आटा खतम हो गओ है।’’ रामदेई ने राघव को रोटी देते हुए हरिया की तरफ देखते हुए कहा।

‘‘तो का करैं.......बेकार तो बैठे नईंयां। काम की जुगाड़ में जात तो हैं रोज शहर कों......अब काम नईं मिल रओ तो हम का डाका डालन लगें?’’ हरिया ने बिना सिर उठाये अपना गुस्सा निकाला।

राघव ने हाथ के इशारे से रामदेई को शांत रहने को कहा। रामदेई और चम्पा चुपचाप अपने-अपने काम में लगीं रहीं।

रात गहरा गई थी किन्तु न तो हरिया की आँखों में नींद थी और रामदेई भी सो नहीं पा रही थी। दोनों के मन में अपनी-अपनी तरह की समस्या बन बिगड़ रही थी। दोनों के अपने-अपने ख्याल घुमड़ रहे थे। रामदेई अपने आप से ही बतिया रही थी ‘काये के लाने आतई इनसे उलझ गये? पूरे दिन के थके लौटे हते शहर से और न पानी को पूछौ और न कोनऊ हालचाल पूछे बस शुरू कर दई हती अपनी रामायण। हमऊँ का करें, रोजईं जो कोनऊ न कोनऊ बुरई खबर सुनन को मिल जात है। जिया में एक धड़का सो लगो रहत है.....जब मन परेशान होत है तो अच्छो-अच्छो किते से सोच पाउत हैं......बुरई-बुरई बातईं दिमाक में आउत हैं।’

‘हे राम! किरपा निधान’ कह रामदेई ने जम्हाई लेकर बगल में लेटे हरिया की तरफ देखा। हरिया उसे गहरी नींद में सोता दिखायी दिया। रामदेई उसको सोता जानकर दूसरी तरफ करवट लेकर सोने का प्रयास करने लगी।

नींद तो हरिया को भी नहीं आ रही थी। वह आँखें बन्द किये अपनी स्थिति को टटोल रहा था। शहर जाकर मजदूरों के साथ खड़ा होना, काम की तलाश में भटकना, आने वाले ग्राहकों से रुपये-पैसे का मोल-तोल करना। कभी काम मिलता, कभी नहीं मिलता। कभी जरा सी भी गलती हो जाने पर मालिक का चिल्ला पड़ना, तय मजदूरी को काट लेना आम बात बन गयी थी। सूखे की स्थिति ने उसे पग-पग पर जलालत का सामना करवाया है। खेतों में कुछ भी न हो पाने के कारण आर्थिक स्थिति भी जर्जर हो चुकी है। मुखिया का और दूसरे अन्य लोगों का कर्जा भी सिर पर लदा है। इसी का परिणाम है कि आज उसे अवध के सामने हाथ जोड़ने पड़े।

लेटे-लेटे हरिया को अपनी युवावस्था के दिन याद आने लगे जब आज का मुखिया ‘बिरजुन’ के नाम से जाना जाता था। बिरजुन के पिता का सक्रिय रूप से राजनीति में भाग लेना, ग्राम प्रधान बनना, सम्पत्ति, जमीन के मामले में हरिया के पिता से सक्षम होना उसकी आँखों के सामने घूम गया। जातिगत समानता होने के कारण बिरजुन या उसका पिता हरिया के परिवार को कभी झुका नहीं सकं किन्तु आर्थिक स्थिति से समृद्ध होने के कारण उन पर रोब हमेशा गाँठते रहे। हरिया के पिता की मृत्यु के बाद उन लोगों द्वारा हरिया को परेशान करना, बिरजुन द्वारा रामदेई को छेड़ने की घटना, उसके ग्राम प्रधान पिता और अन्य बाहुबलियों द्वारा दवाब बनाकर रामदेई पर चारित्रिक लांछन लगाना आदि उसे आज भी भीतर तक परेशान कर देता है।

हरिया ने हड़बड़ा कर आँखें खोलीं। खुले में लेटे होने के बाद भी उसका चेहरा, हाथ, पैर पसीने से भीगे थे। रामदेई की ओर देखा, वो शांत निर्विकार भाव से अपनी नींद ले रही थी। हरिया ने हाथ बढ़ा का लोटा उठाया और एक सांस में खाली कर गया। बैठे-बैठे उसने आसमान की ओर ताका। सुबह होने में अभी काफी समय लग रहा था। पसीना पोंछ वह बापस चारपाई पर लेट कर सोने का प्रयास करने लगा। दो-चार मिनट की असफल कोशिश के बाद अपनी परेशानी मिटाने को बीड़ी जला कर कश लगाने लगा। नींद जैसे कोसों दूर थी और उसके साथ अभी तक होता आया दुर्व्यवहार जैसे उसके साथ ही चिपक गया था।

उसे महसूस हुआ कि समाज में अगड़े-पिछड़े का भेद तो अपनी जगह पर है ही किन्तु अमीरी-गरीबी का भेद तो सबसे भयावह है। सवर्ण-दलित के भेद को तो एकबारगी धन-सम्पत्ति ने छुपा सा दिया है पर अमीरी-गरीबी के भेद को नहीं मिटाया जा सका है। वह खुद ही देखता है कि हमउम्र, सजातीय, सवर्ण होने के बाद भी उसे मुखिया के बराबर बैठने को स्थान प्राप्त नहीं होता है परन्तु राजनैतिक दाँवपेंच में माहिर और नामधारी तमाम विजातीय नेता उसके साथ हमप्याला, हमनिवाला भी होते हैं। अमीरी-गरीबी के इसी विभेद के कारण तो उसकी पत्नी से शारीरिक दुर्व्यवहार तक किया गया, आज भी उसकी पत्नी और बेटी को कामुक निगाहों और शब्द-वाणों का प्रहार सहना पड़ता है। ऐसा उसके साथ ही नहीं गाँव की हर उस लड़की, महिला के साथ होता है जो या तो गरीब है या फिर पिछड़ी है। कई महिलाओं को तो अपनी इज्जत तक गँवानी पड़ी और कईयों को जान से भी हाथ धोना पड़ा पर कुकर्मी रईस आज भी जिन्दा हैं और पूरी शान से गरीबों की इज्जत तार-तार कर रहे हैं। सारा घटनाक्रम सोच-सोच कर परेशानी में हरिया इधर-उधर करवट बदलने लगा।

‘‘दद्...ऽ...ऽ...ऽ...दा..ऽ..ऽ’’, चम्पा की चीख सुन हरिया ने पलट कर देखा। पानी से भरी बाल्टी लिए चम्पा भागने की कोशिश कर रही है और एक गाय उसके पीछे लगी है। हरिया और उसके साथ चल रहे दो-तीन लोग फुर्ती से चम्पा की ओर दौड़े। उन लोगों ने अपनी-अपनी लाठी के सहारे गाय को रोकने की कोशिश की मगर गाय पूरी ताकत से चम्पा की तरफ दौड़ी जा रही थी। कई दिनों की प्यासी गाय को चम्पा के हाथ में पानी भरी बाल्टी दिखाई दे रही थी। गाँव में सूखे ने सभी कुओं, तालाबों, हैण्डपम्पों आदि का पानी भी सुखा दिया था। समूचे गाँव में तीन लोगों के ट्यूबवैल काम कर रहे थे और लोगों को पानी इन्हीं से प्राप्त होता था। प्यासे को पानी पिला देने की भारतीय अवधारणा से बहुत दूर इस गाँव में लोगों को पानी खरीदना पड़ रहा है। चम्पा भी पानी खरीद कर ला रही थी। प्यास से बेहाल आदमी भी कई बार गलत कदम उठा जाता है, नादान और बुद्धिहीन गाय पानी की बाल्टी देख अपनी प्यास को और न रोक सकी। इससे पहले कि वे लोग चम्पा को गाय से बचा पाते गाय ने चम्पा को पटक दिया और जमीन पर फैल गये पानी में मुँह मारने लगी।

हरिया ने आव देखा न ताव, पूरी ताकत से गाय पर लाठी जमा दी। भूखी-प्यासी गाय लाठी का ताकतवर वार सहन न कर सकी और तेजी से रंभा कर भागने की कोशिश में लड़खड़ा कर वहीं फैले पानी में गिर पड़ी। हरिया ने दौड़ कर चम्पा को उठाया और कुछ लोगों ने गाय की तरफ ध्यान दिया। तीन-चार बार अपने चारों पैर झटक कर गाय शांत हो गई। आँखें बाहर निकल कर उसके निर्जीव होने का सबूत दे रहीं थीं। ‘गइया मर गई’ सुन घबरा कर हरिया झुका और गाय पर हाथ फेरा किन्तु सब बेकार। उसका एक वार गाय के प्राण ले चुका था। वह भौंचक्का सा गाय के पास ही उकड़ूँ बैठा रहा। लोगों की भीड़ मृत गाय और हरिया को घेरने लगी।

‘हरिया ने गइया मार दई.........पाप कर दओ..............गऊ हत्या लगहै..........महा पाप हो गओ.........हरिया ने पाप कर दओ............हरिया ने गइया मार दई..............’ का शोर उसके चारों ओर बढ़ता ही जा रहा था।

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आगे क्या हुआ पढियेगा कल चौथे और अंतिम भाग में शाम 07:00 बजे

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