तथाकथित भगवानों की नाकामी पर अपने आँसुओं को कुर्बान करने वाले देशभक्त भारतीय नौजवान और नवयुवतियो....इन के साथ इनके भगवानों को महिमामंडित करने वाली मीडिया के जागरूक पहरुओ...क्यों निराश हो रहे हो क्षणिक नाकामी पर? इन वीर योद्धाओं के द्वारा तो सदा से यही होता आया है। देश के बाहर निकले नहीं कि सबकी हवा टाइट हो जाती है और खेलने की बत्ती गुल हो जाती है। इससे किसी भी देशभक्त को निराश, हताश होने की आवश्यकता नहीं है।
आस्ट्रेलिया का शर्मनाक दौरा तो उसी तरह से क्षणभंगुर है जैसे कि मानव जीवन होता है फिर मीडिया ने और इनके प्रेमियों ने इन्हें मानव से ऊपर तो उठा ही दिया है। अब जबकि ये सब मानव से ऊपर हैं तो इनकी क्षणभंगुरता भी मानवीय क्षणभंगुरता से अलग ही होगी। मीडिया को बैठे-ठाले एक अवसर मिल गया है, इन पर घंटों के हिसाब से कार्यक्रम करवा कर इन पर स्यापा करने का। लानत भेजी जा रही है अब सीनियर्स की फिटनेस पर और अभी कल की ही बात है इन्हीं सीनियर्स के दम पर यही मीडिया हमें अगला विश्वकप पुनः जीतने का स्वप्न दिखा रही थी।
कोई बात नहीं, होता ही है ऐसा। अरे! हम कहते तो हैं कि गली का कुत्ता भी शेर होता है, ऐसे में यदि मीडिया और प्रशंसक घोषित भगवान अपना सर्वोत्तम आस्ट्रेलिया में नहीं दिखा पा रहे हैं तो उसका सीधा सा अर्थ है कि वो अपने घर में नहीं हैं। आज के दौर में आस्ट्रेलिया अपने घर में है और गली का कुत्ता होना को चरितार्थ कर रहा है, कल को हमारी टीम भी अपने देश में खेलेगी और इसी उक्ति को चरितार्थ करेगी।
इसके अलावा सीनियर्स को चुका हुआ मानने की अभी भी कोई वजह नहीं दिखती है। वे सब के सब तो सदा से इसी तरह का प्रदर्शन करते रहे हैं। सम्भव हो कि मीडिया को अथवा इन भगवानों के पुराने प्रदर्शनों की याद न रहती हो पर इतिहास देखा जाये तो इन भगवानों ने तो हमेशा से यही उच्चावचन का दौर दिखाया है। दसियों मैचों में गया-गुजरा प्रदर्शन करने के बाद किसी एक मैच में अच्छा प्रदर्शन करके अगले कई वर्षों के लिए टीम में जगह को घेरे रहते हैं। इनकी स्थिति ठीक उस यात्री की तरह से होती है जो भीड़ भरे प्लेटफार्म में किसी तरह से खिड़की से हाथ घुसा कर एक अदना से रुमाल के सहारे पूरी की पूरी सीट घेर लेता है और पूरी यात्रा भर उसे अपनी बपौती मानकर बाकी यात्रियों को वहाँ से टरकाता रहता है।
अरे! चलने तो दो अभी किसी एक मैच में बल्ला फिर देखना अभी इन सीनियर्स के प्रदर्शन पर थू-थू कर रहे प्रशंसक और मीडिया कैसे कूद-कूद कर इनका महिमामंडन करेगी। चिन्ता न करो हमारे हताश हो रहे रणबाँकुरो! आस्ट्रेलिया दौरा कोई आजीवन थोड़े ही चलना है कि अब हमारे भगवान वापस देश लौटकर आयेंगे ही नहीं। अरे! आने तो दो अपने देश में, खेलने तो दो अपने भगवानों के अनुकूल बनाई गई पिचों पर फिर देखना इन बुढ़ाती हड्डियों का चमत्कार और साथ में देखना मीडिया का हाहाकार, प्रशंसकों का चीत्कार। सारी धरती को अपने सिर पर उठा लेंगे...ये कहो कि इन्हें बाकी देशवासियों की जान की फिक्र होती है अन्यथा भगवानों के क्षणिक चमत्कारी प्रदर्शन के बाद मीडिया और प्रशंसक धरती ही पलट दें।
तो हे धरती पलटने की असीम शक्ति रखने वाली मीडिया और भगवान के प्रशंसको! इस तरह से इस क्षणिक नाकामी पर अपने आँसुओं को मत बर्बाद करो। देश में रोने के लिए अभी बहुत सारे मुद्दे हैं, बहुत से लोग हैं। इनका क्या है, ये जरा सी चमक दिखायेंगे और तुम सब कुछ भूल कर फिर अपनी देह रंगे घूमोगे, सड़कों पर अर्द्धनग्न डोलोगे और एक दो दिन की खुमारी के बाद फिर अपने भगवान की छीछालेदर करने पर आमादा हो जाओगे, इनकी अतिउत्कृष्ट क्षमता पर संदेह करने लगोगे। तुम सब कुछ भुलाकर सिर्फ और सिर्फ चिल्लाते रहो क्योंकि आज के भगवानों के रिटायर होने के बाद तुम सब फिर किसी और को भगवान बनाओगे, उसके लिए पहले चिल्लाओगे और किसी दिन उसकी ही छीछालेदर करते हुए उसके लिए आँसू बहाओगे।
तो हे मीडिया! हे प्रशंसको! तुम बस चिल्लाओ, हाहाकार मचाओ। तुम्हारा बनाया भगवान हर बार बदलेगा पर तुम अपना कर्तव्य न बदलो। अपना चिल्लाहट धर्म न बदलो।
1 टिप्पणी:
बिलकुल सही लिखा है. क्रिकेट भी एक तरह की अफीम ही समझिए भारत के युवाओं के लिये.
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