मत रोको मुझे रोकने वालो,
मैं चलती हूँ.
मत रोना मुझे चाहने वालो,
मैं चलती हूँ.
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अंश थी मैं वीणावादिनी
का, ऋग्वेद की एक ऋचा थी,
रूद्र जटाओं से जो निकली,
वो लहर थी सुर सरिता की,
रूप कोई हो, रंग कोई हो, हर
स्वरूप में मैं बसती हूँ,
मत रोको मुझे रोकने वालो,
मैं चलती हूँ.
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संगीत मेरा अस्तित्व बनेगा,
शब्द मेरी पहचान बनेंगे,
मेरे गीत, ग़ज़ल और कविता, कोटि-कोटि
कंठों में सजेंगे,
सुर में, लय में और ताल
में, धुन बन कर मैं सजती हूँ,
मत रोको मुझे रोकने वालो,
मैं चलती हूँ.
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नश्वरता में न खोजो
मुझको, अंतर्मन में देखो मुझको,
मनसा, वाचा और कर्मणा की दुनिया
में खोजो मुझको,
प्रेम, स्नेह, आदर,
सम्मान के, रिश्तों में मैं पलती हूँ,
मत रोको मुझे रोकने वालो,
मैं चलती हूँ.
. ++++++++++++++आज (09-09-2015) डॉ० वीना श्रीवास्तव 'वीणा' आंटी की त्रयोदशी-संस्कार था. ऐसा लगा जैसे वे अप्रत्यक्ष रूप से सबको एक सन्देश दे रही हों....
1 टिप्पणी:
विनम्र श्रद्धाँजलि ।
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