गुरुवार, 14 सितंबर 2017

न सपने तू देखा कर

कितना समझाया है मन मतवाले,
न सपने तू देखा कर-
सपनों की दुनिया में महज छलावे,
न सपने तू देखा कर-
सपनों की दुनिया निर्मोही,
खो जायेगा ओ मनमौजी,
सुख है केवल दो पल का,
वह भी केवल कोरा-कोरा,
मृगतृष्णा सी एक जगाकर,
आ जाते हैं हमें डराने,
कितना समझाया है मन मतवाले,
न सपने तू देखा कर-
सपने हैं इक झील विशाल,
चमके जगमग नीला आकाश,
चांद तारों का रूप दमकता,
मोहित होता तू देख छटा,
झोंका हवा का अगले ही पल,
मचा देता है जैसे हलचल,
जगमग झील का रूप बदलता,
मंजर बस उठती गिरती लहरों का,
ढूँढें किसमें चन्दा तारे,
अब तो बस धारे ही धारे,
कितना समझाया है मन मतवाले,
न सपने तू देखा कर-
सपना एक सजाया फिर भी,
घरौंदा एक बनाया फिर भी,
जुगनू की जगमगाहट जिसमें,
चिड़ियों की चहचहाहट जिसमें,
राह-राह पर फूल खिले हैं,
नहीं कहीं भी शूल मिले हैं,
महकी जिसमें खुशियां ही खुशियां,
नहीं दिलों के बीच दूरियां,
लेकिन जीवन एक हकीकत,
न सपनों से जाये काटे,
कितना समझाया है मन मतवाले,
न सपने तू देखा कर-

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