धरती है कदमों तले, अब आसमां
की बारी है,
ऐ ज़िन्दगी तू क्या जाने, तेरी
किससे यारी है.
रास्ते कठिन हों भले मगर, मंजिल
तक तो जाते हैं,
आँखें हैं बस मंज़िल पर, और
हौसलों की सवारी है.
जितने भी हों रंग तेरे, तू
जी भर-भर के दिखला ले,
पर भूल न जाना इतना कि, आनी
मेरी भी बारी है.
शबनम की दो बूँदों से, है प्यास नहीं बुझने वाली,
तपिश मिटाने सदियों की, समंदर की चाह हमारी है.
ख़ामोशी को तुम हार न समझो,
ये अंदाज हमारा है,
हम पर हमारे जलवों की, अब
तक छाई खुमारी है.
उठना होगा जब नजरों का, पल
वो क़यामत का होगा,
तब तक जितनी तय कर लो, वो
उतनी हद तुम्हारी है.
निकल जाएँगे हार मान के, इस
धोखे में मत रहना,
जीत जाएंगे जंग सभी, अपनी ऐसी
तैयारी है.
जो पला बढ़ा संघर्षों से, वो
ना ऐसे टूटेगा,
जीवट है उसका आत्मबल, तेरे
वारों पर भारी है.
1 टिप्पणी:
फ़ीनिक्स एक पक्षी है जो अपना नया जन्म राख से लेता। राख जिसमे जीवन कब का झुलस चुका होता है लेकिन उसी में कोई अपनी जिजीविषा से सब कुछ पलट देने के हौसले के साथ नया जीवन शुरू करता है
आपकी इक्षाशक्ति इस कविता से झांकती है।सुंदर रचना।
एक टिप्पणी भेजें